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धर्म ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है - त्यागी श्री चन्द्रसेनजी

 
सिंगोली (निखिल रजनाती) । 
दिगम्बर जैन समाज के दशलक्षण पर्व के पांचवें दिन श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में दशलक्षण पर्व के अवसर पर श्रद्धेय त्यागी जी श्री चंद्रसेन जी ने धर्मोपदेश देते हुए उपस्थित श्रावकों से कहा कि धर्म दस नहीं होते हैं धर्म तो एक वीतराग भाव है दस तो धर्म के लक्षण हैं।उन्होंने बताया कि धर्म ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है क्योंकि तत्वों के अभ्यास से जब जीव की श्रद्धा गुण की पर्याय सम्यक होती हैं तो आत्मा के सभी गुण सम्यक दशा को प्राप्त होते हैं।सम्यक दृष्टि के जीवन में श्रद्धा गुण पुर्ण शुद्ध हो जाने पर भी ज्ञान चारित्र आदि गुणों की शुद्धि में क्रम पड़ता है किन्तु अल्पकाल में पुर्णता प्राप्त कर मोक्ष दशा यानी (अतिइंद्रिय परम सुख की दशा)को प्राप्त होता ही है।उत्तम क्षमा मार्दव, आर्जव,शौच,सत्य आदि चारित्र गुण के पर्याय हैं इनके पूर्ण रुप तो मुनिराजजी के जीवन में प्रगट होते है परन्तु गुणस्थान प्रमाण आंशिक शुद्धि ग्रहस्थों के जीवन में भी होती हैं।आपने बताया कि दश धर्म में प्रथम तीन उत्तम क्षमा,मार्दव,आर्जव तो आत्मा के भाव रुप है उत्तम शौच, सत्य,संयम,तप,त्याग धर्म को उपाय(साधन)के रुप समझना चाहिए, ऐसे भाव और उपाय से आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य जीवन में उपेय (साध्य )रुप में प्रकट होते है।राहुल भैया रानीपुर द्वारा भी स्वानुभव कैसे करना चाहिए इस संबंध में ज्ञान कराया जा रहा है।श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर ट्रस्ट से मिली जानकारी के मुताबिक रात्रि में प्रवचन के उपरांत कविता बागड़िया और अपूर्वा ठोला के मार्गदर्शन और निर्देशन में बच्चों में ज्ञानवर्धक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जा रहा है।

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