नरसिंहपुर ।ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारिका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 11 सितंबर रविवार को 99 साल की आयु में निधन हो गया,उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में रविवार को दोपहर 3:30 बजे अंतिम सांस ली।स्वामी शंकराचार्य लंबे समय से बीमार चल रहे थे,उनका बेंगलुरु में उपचार किया जा रहा था तथा कुछ ही दिन पहले वे आश्रम लौटे।स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी ने आजादी की लड़ाई में भी अपना योगदान दिया और वे जेल भी गए।उन्होंने ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी।शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्मविद्यानंद ने बताया कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को 12 सितंबर सोमवार को शाम 5:00 बजे दशनामी परम्परा के अनुसार परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी।उल्लेखनीय है कि जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती दो मठों द्वारका एवं ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे।स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।उनके माता-पिता ने उनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। केवल 9 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू की,इस दौरान वे उत्तरप्रदेश के काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी श्री करपात्री महाराज (वेद वेदांग एवं शास्त्रों) से शिक्षा ली।वर्ष 1942 के दौर में मात्र 19 वर्ष की आयु में वे क्रांतिकारी साधु के रूप में पहचाने गए।जगतगुरु शंकराचार्य का 99 वां जन्मदिन हरियाली तीज के दिन मनाया गया था।स्वामी स्वरूपानंदजी ने 1950 में ज्योतिर्मठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती से दंड संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए।1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली।