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(नवरात्रि प्रथम दिवस -माता शैलपुत्री का रूप)

हर महीने ज्वालादेवी बन ईडाणा माँ करती है अग्नि स्नान 

माता की प्रतिमा से होती है अग्नि प्रज्वलित

(शंकरगिर रजनाती)

 

हमारे भारत देश में ऐसे बहुत से मंदिर स्थापित है जो अपने आप में ही बहुत प्राचीन और विख्यात है।इन मंदिरों की लोकप्रियता इतनी होती है कि दूर-दराज के लोग तो आते ही हैं बल्कि विदेशों से भी लोग दर्शनों के लिए आते हैं।ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो बहुत ही पुराना व जिसकी कहानी बड़ी ही दिलचस्प है।यह मंदिर राजस्थान की ईडाणा माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।यहाँ पर माँ के चमत्कारिक दरबार की महिमा बहुत ही निराली है जिसे देखने दूर-दूर से लोग मातारानी के दरबार में आते हैं। वैसे तो भारत भूमि पर बहुत सारे चमत्कारिक स्थल हैं लेकिन इसकी महिमा बिल्कुल ही अलग और चौंकाने वाली है।यह चमत्कारी मन्दिर उदयपुर शहर से 60 कि.मी. दूर अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है।माता का यह दरबार बिल्कुल खुले एक चौक में स्थित है और इस मंदिर का नाम ईडाणा उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।इस माता मंदिर में भक्तों की खास आस्था है क्योंकि यहाँ मान्यता है कि लकवा से ग्रसित रोगी माँ के दरबार में आकर ठीक हो जाते हैं।इस मंदिर की हैरान करने वाली बात यह है कि मन्दिर में स्थित देवी माँ की प्रतिमा से हर महीने में दो से तीन बार अग्नि प्रज्वलित होती है एवं इस अग्नि स्नान से माता की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियाँ,धागे,माला आदि भस्म हो जाते हैं और इसे देखने के लिए  माँ के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है लेकिन अगर बात करें इस अग्नि की तो आज तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि ये अग्नि कैसे अपने आप प्रज्वलित हो जाती है।ईडाणा माता मंदिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आसपास के गाँवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है।मंदिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं।ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती है और इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक पहुंच जाती है लेकिन इस अग्नि के पीछे खास बात ये भी है कि आज तक श्रृंगार के अलावा किसी अन्य चीज को कोई आँच तक नहीं आती।भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं और इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया।ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है उसकी हर इच्छा पूरी होती है।यहाँ भक्त अपनी इच्छा पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते हैं और साथ ही जिन लोगों के संतान नहीं होती वो दम्पत्ति यहाँ झुला चढ़ाने आते हैं।खासकर इस मंदिर के प्रति लोगों का विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी माता के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं।

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