अदृश्य शक्ति के रूप में प्रकट होकर कृपा बरसाती है भादवामाता
मध्यप्रदेश के नीमच शहर से लगभग 18 कि.मी. की दूरी पर मालवा की वैष्णोदेवी कहा जाने वाला भादवामाता का मन्दिर है।लोगों का ऐसा विश्वास है कि माता के आशीर्वाद से लकवा,नेत्रहीनता,कोढ़ आदि से ग्रस्त रोगी निरोगी होकर घर जाते हैं।भादवामाता के मंदिर में चाँदी के सिंहासन पर विराजित है माँ की चमत्कारी मूर्ति और इस मूर्ति के नीचे माँ नवदुर्गा के नौ रूप विराजित हैं।कहते हैं मूर्ति भी चमत्कारी है और चमत्कारी है वह अखण्ड ज्योत है जो कई सालों से अखंडित रूप से जल रही है।यह ज्योत कभी नहीं बुझी और माँ के चमत्कार भी कभी नहीं रुके।आज भी यह ज्योत माँ की प्रतिमा के समीप ही प्रज्ज्वलित हो रही है।माता के इस मंदिर में साक्षात चमत्कार देखने को मिलते हैं।देश के अलग-अलग इलाकों से यहाँ लकवाग्रस्त व नेत्रहीन रोगी आते हैं जो माँ के मंदिर के सामने ही रात्रि विश्राम करते हैं।वैसे तो बारह महीने यहाँ भक्तों का जमावड़ा रहता है लेकिन नवरात्रि में यहाँ श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है विशेष तौर पर अष्टमी तिथि को और इसी दिन यहाँ अष्टमी का हवन भी किया जाता है वहीं इस दिन रात्रि में भादवामाता पहुँचने के लिए पदयात्रियों के जत्थों के रूप में भक्तों का रेला चलता है जिससे नीमच-मनासा सड़क मार्ग काफी व्यस्त रहता है जबकि भक्तों की सेवा के लिए मार्ग में जगह-जगह लँगर लगे रहते हैं।मंदिर परिसर में इधर-उधर डेरा डाले कई लकवा रोगी देखने को मिल जाएँगे जो निरोगी होने की उम्मीद से कई मीलों का सफर तय करके भादवामाता की शरण में आते हैं।ऐसा माना जाता है कि अदृश्य शक्ति के रूप में प्रकट होकर दीन दुखियों पर कृपा बरसाती है भादवामाता इसी के चलते लोगों का कहना है कि रोज रात को मातारानी मंदिर में फेरा लगाती है तथा अपने भक्तों को आशीष देकर उन्हें निरोगी करती है इसीलिए रात्रि के समय श्रद्धालु मंदिर प्रांगण में रुकते हैं और विश्राम करते हैं।कई लोग यहाँ आए तो दूसरों के कंधों के सहारे परंतु गए बिना किसी सहारे के अपने पैरों पर।जब से माता रानी का मंदिर है तब से यहाँ एक प्राचीन बावड़ी भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि माता ने अपने भक्तों को निरोगी बनाने के लिए जमीन से यह जल निकाला था और कहा था कि मेरी इस बावड़ी के जल से जो भी स्नान करेगा वह रोगमुक्त हो जाएगा।मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी का जल अमृत तुल्य है।माता की इस बावड़ी के चमत्कारी जल से स्नान करने पर समस्त शारीरिक व्याधियाँ दूर होती हैं।यह भी आश्चर्यजनक है कि जब भादवामाता की आरती होती है तब यहाँ मुर्गा,कुत्ता,बकरी आदि सभी जानवर बड़ी तल्लीनता से माता की आरती में शामिल होते हैं।आरती के समय मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ के साथ मुर्गे और बकरियां भी घूमती नजर आती हैं।ये जानवर कहाँ से आते हैं रोचक बात तो यह है कि ये जानवर कहाँ से आते हैं किसी को भी मालूम नहीं है वहीं लोगों का मानना है कि मंदिर में लोग मन्नतें मानते हैं और जब मुराद पूरी हो जाती है तो मन्नतों के अनुसार लोग इस मंदिर में जिंदा मुर्गे और बकरी छोड़ जाते हैं।इसके अलावा,चाँदी और सोने की आंख और हाथ भी माता को चढ़ाए जाते हैं।माता अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करती।यहाँ अमीर हो या गरीब,इंसान हो या जानवर सभी मंदिर परिसर में माँ की मूर्ति के सामने रात में विश्राम करते हैं और एक साथ मिलकर महामाया भादवामाता का गुणगान करते हैं।
(संकलनकर्ता-शंकरगिर रजनाती)