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नवरात्रि नवाँ दिन - माँ सिद्धिदात्री

 

 

भँवरमाता में बरसती है माँ ब्राह्मणी की कृपा

 

 

राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के छोटीसादड़ी उपखण्ड मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर दूर स्थित है भँवरमाता का मन्दिर जहाँ बरसती है माँ ब्राह्मणी की कृपा।मेवाड़-मालवा और कांठल क्षेत्र का प्रमुख शक्ति पीठ भँवरमाता का मन्दिर है जो अरावली की सुन्दर अट्टालिकाओं में सुशोभित है।शक्तिपीठ भँवरमाता में देवी माँ भँवरमाता,माँ कालिका और सरस्वती माता विराजित हैं।यहाँ मन्दिर के साथ प्रमुख आकर्षण का केंद्र लगभग 70 फीट ऊंचाई से बहने वाला जलप्रपात है जो एक कुण्ड में गिरता है।मन को मोह लेने वाले इस झरने को देखने के लिए बड़ी तादात में लोग दूरदराज से यहां पंहुचते हैं।माना जाता है कि यहाँ आने वाले श्रद्धालु की हर मनोकामना पूर्ण होती है।इस रमणीय स्थल पर हर रविवार और नवरात्रि में मेवाड़-मालवा सहित कई प्रदेशों के लोग मातारानी के दर्शन के लिए पहुँचते हैं।राजस्थान सहित मध्यप्रदेश के नीमच,रतलाम,मंदसौर,इंदौर सहित कई प्रदेशों के लोग यहाँ  मातारानी के प्रति आस्था और श्रद्धा के साथ पहुँचते हैं।ऐसा माना जाता है कि भँवरमाता पवित्र तीर्थ स्थान पर श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को माँ ब्राह्मणी की कृपा बरसती है।यहाँ कई सालों से मेला भी लगता है।मातारानी के इस दरबार में भक्तों के प्रेत दोष या पितृ दोष को दूर किया जाता है साथ ही जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती है वे अपने पति के साथ मन्दिर के पवित्र कुण्ड में स्नान करके माता के सच्ची श्रद्धा से मन्दिर की सात परिक्रमा करके माँ को प्रणाम करके अपनी मन्नत को शेर के कान में कहने पर माँ आशीर्वाद स्वरूप भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करती हैं।प्रकृति की ऐसी सुंदरता और धार्मिक स्थल का संगम दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलता है।मुख्य मन्दिर में विराजमान तीन देवियों का संगम और यहां प्राकृतिक छटाओं के बीच 70 फीट से गिरने वाला जलप्रपात और पवित्र कुण्ड लोगों को सुकून और आनंद देता है।भँवरमाता मन्दिर में संवत् 547 का एक शिलालेख उपलब्ध है जिसमें असुर-संहारिणी,शूलधारिणी दुर्गा की आराधना की गई है।इस शिलालेख में माता पार्वती द्वारा शिव के प्रति भक्ति और श्रद्धा से अभिभूत होकर शिव का आधा शरीर बन जाने का उल्लेख भी किया हुआ है।जानकारों की मानें तो भँवरमाता मन्दिर से मिले इस शिलालेख में देवी दुर्गा को महिसासुर राक्षस मर्दन के लिए उग्र सिंहों के रथ पर सवार होकर जाने का वर्णन है।

(संकलनकर्ता-शंकरगिर रजनाती)

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