सिंगोली(निखिल रजनाती)।अर्थ और काम पुरुषार्थ को नियंत्रित करने के लिए इन्द्रियों और मन को वस मे रखना अनिवार्य है मन कि चन्चलता से इन्द्रियों अपने विषयों की ओर दोडती है।यह बात धार्मिक नगरी झांतला मे विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ने शनिवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा।मुनि श्री ने बताया कि इन्द्रिय विषय खाज रोग के समान है जो खुजलाने पर बढता जाता है,उसी प्रकार इन्द्रिय विषय एक बार भोगने के बाद उन्हे भोगने की इच्छा बढती जाती है।सांप का डसा तो एक जीवन मे ही दुःख पाता है पर इन्द्रिय विषय रुपी सर्प का डसा भव भव में दुःख प्राप्त करता है,एक एक इन्द्रिय के भोगों के कारण हाथी मछ्ली भोरा पतंगा और हिरण दुःख प्राप्त करते हैं तो जो मानव पांचों इंद्रियों के भोगों में लगा हुआ है उसकी क्या गति होगी कहा नहीं जा सकता।मुनि श्री ने कहा कि आज की युवा पीढी रसना इन्द्रियों के कारण भक्ष्या-भक्ष्य के विवेक से रहित हो नहीं खाने योग फास्ट फूड का सेवन कर अपने स्वास्थ्य और धर्म संस्कृति को विक्रत कर रहे हैं,विदेशी खानपान को अपनाकर जीवन को विष मय कर रहे हैं।भारतीय संस्कृति और धर्म ही जीवन में सुख शान्ति दे सकता है,आज पश्चिम के लोग भी स्वीकार कर रहे हैं इसलिए सबको अपनी संस्कृति व धर्म कि रक्षा के लिए संकल्पबद्ध होना चाहिए।इस अवसर पर दिगम्बर बघेरवाल समाज के सभी समाजजन उपस्थित थे।