सिंगोली(निखिल रजनाती)। जैसी संगति वैसी मति जैसी गति सज्जन की संगति व्यक्ति को सज्जनता प्रदान करती है और दुर्जनों की संगति दुर्जनता देती है,पानी सीप में जाकर मोती बन जाता है तो केले के वृक्ष में कपूर बन जाता है और सर्प के मुख में जाकर विष बन जाता है।सज्जनों के पास जाने से गुणों मे वृद्धि होती है।यह बात झांतला में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जो दुर्जनों के साथ रहने पर दुर्गुणों के कारण दुर्गति होती है साधु की संगति से डाकू भी साधु बन जाते हैं चन्दन का चुरा हाथ में लेने के बाद उसे अलग करने पर भी हाथ सुगंध से युक्त रहता है वैसै सज्जन की संगति रहने पर भी जीवन उज्जवल बनता है और अलग होने पर गुणों की सुगंध से हमेशा महकता रहता है।कोयला हाथ में लेने पर काला होता है और अलग करने पर भी हाथ पर कालिमा रह जाती है वैसै ही दुर्जनों के साथ रहने पर जीवन पापमय बनता है और बाद में दुर्गति रूपी कालिमा से भर जाता है।व्यसन जीवन को नष्टकर इस जन्म में दुःख देते हैं और जन्मान्तर में भी दुःख के कारण होते हैं,व्यसनी की संगति में व्यसन नहीं करने वाला भी व्यसनी कहा जाता है। मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने भी कहा कि बचपन के संस्कार पचपन तक बने रह कर जीवन को सुखमय बनाते है आज मोबाईल टेलिविजन के कारण बच्चों में संस्कार समाप्त हो रहे हैं इस कारण बड़े होने पर वे माता पिता से दूर धन कमाने के भाव से जाते हैं और वहीं होकर रह जाते हैं।वर्तमान में अभिभावकों की कमी है वे समय रहते बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं बाद मे वे पश्चाताप करते हैं वही मुनिश्री के सानिध्य में 20 जून मंगलवार को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का आचार्य पदारोहण दिवस मनाया जाएगा इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित रहेंगे।