सिंगोली(निखिल रजनाती)। सिंगोली अँचल की धार्मिक नगरी झांतला में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभसागर जी महाराज ने प्रातःकाल में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जो नाव के समान स्वयं पार जाते है और दूसरों को भी पार लगाते हैं वे आचार्य कहलाते हैं।आज के ही दिन आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए 33 वर्ष पूर्ण हो गए,उनके वात्सल्य समन्वय के गुण के कारण ही विश्व प्रसिद्ध श्रवणबेलगोला क्षेत्र में तीन बार महामस्तकाभिषेक महोत्सव का आयोजन हुआ।आचार्य महाराज पूर्वाचार्यो के प्रति समर्पित रहते हैं और आगम परम्परा का निष्ठा से पालन करते हैं,वे निर्माण कार्यों से दूर रहकर भव्यजनों के निर्वाण मार्ग प्रशस्त करने का कार्य करते है।आचार्य महाराज के कुशल निर्यापकत्व में कई समाधि साधकों ने अपनी समाधि की साधना पूर्ण की।आचार्य महाराज वात्सल्य के धनी है,छोटे से छोटे व्यक्ति पर उनका अपार वात्सल्य होता है।इस अवसर पर मुनिश्री दर्शितसागर जी महाराज ने भी कहा कि जिस प्रकार एक परिवार को सुचारुरूप से चलाने का कार्य परिवार का मुखिया करता है वैसै ही आचार्य परमेष्ठि भी शिष्य वर्ग को सुचारू रूप से मोक्ष मार्ग में चलाने का कार्य करते है।गुरुवर आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज ने मुझ जैसे अनगढ़ पत्थर को गढ़कर मोक्ष मार्ग का पथिक बना दिया।आचार्य गुरुदेव के अनन्त उपकारों को भुलना कठिन है हम भावन भाते हैं कि गुरुदेव अधिक से अधिक समय आचार्य पद का निर्वाह करते हुए भव्य जीवों का कल्याण मार्ग दिखाते रहे।कार्यक्रम के प्रारंभ में आचार्य त्रय के चित्र का अनावरण लादूलाल,संतोष कुमार,रूपचन्द्र,प्रकाशचन्द्र सहित गणमान्य व्यक्तियों ने किया व दोनों मुनिराजों का प्राद प्रक्षालन व शात्र भेंट का सोभाग्य भी समाजजनों को मिला बाद में आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज की संगीतमय पूजन की गई।सिंगोली के महावीर धानोत्या व महावीर साकुण्या के मधुर भजनों के साथ महिलाओं व बालिकाओं के द्वारा अष्ट द्रव्य की थाली सजाकर लाए व भक्ति करते हुए पुजन की।पूजन में सुज्ञान जाग्रति मण्डल विशुद्धवर्धनि महिला मण्डल युवा परिषद के सदस्यों ने उत्साह के साथ भाग लिया।इस अवसर पर सिंगोली,धनगाँव,थडोद सहित कई गांवों के समाजजन उपस्थित थे।