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आकांक्षा आत्मा के सम्यक दर्शन गुण को मलीन कर देती है-मुनि श्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। शंका आकांक्षा की जननी है।भगवान की भक्ति- पूजादि कार्य करके आगामी समय में उससे विषय - भोगों की कामना ही आकांक्षा कहलाती है, और यह आकांक्षा ही आत्मा के सम्यक दर्शन गुण को मलीन कर देती है।व्यक्ति याचना कब करता है जब उसकी श्रद्धा या भक्ति में विश्वास नहीं होता है तब वह याचना करता है।उक्त बात नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने कही।मुनि श्री ने अष्टानिका महापर्व के चोथे दिन गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान पर श्रद्धा-विश्वास रखने वाला कभी मांगता नहीं है।आकांक्षा करने वाला व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता खोकर पराधीनता स्वीकार कर लेता है और पराधीनता में दुःख ही दुःख।विषय भोग काले नाग से भी अधिक दुःखदायी है क्योंकि नाग का डसा एक ही भव में मरण को प्राप्त होता है परन्तु विषय- भोग रूपी नाग का डसा भव-भव में दुःख प्राप्त करता है।समीचीन दर्शन रूपी बीज अंकुरण के लिए योग्य भूमि,हवा,वातावरण के साथ श्रद्धा रूपी जल महत्वपूर्ण है।कपड़े पर लगे मैल को साबुन लगा कर धोते है वैसे ही श्रद्धा रूपी साबुन से आत्मा के साथ लगे कर्म रूपी मैल को धोकर दूर किया जा सकता है।जैसे बछड़ा अपनी बिछुड़ी हुई माँ को पाकर जितना प्रसन्न और आनन्दित होता है वैसै ही सच्चे देव शास्त्र गुरु को पाकर प्रसुदित मन से उनकी भक्ति करना चाहिए।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि पूजा किसी संसारिक प्रलोभन से नहीं अपने मनुष्य जीवन के चरमध्येय को पाने की इच्छा से की जाती है,जिनेन्द्र भगवान की पूजन अपनी मन कल्चित विधि से न करके हम उस विधि से करे जो मूल संघ की आमना आगम के अनुरूप हो संसार में सभी जीव सुख शांति चाहते हैं,इस भीषण विषम काल में जिनेन्द्र भगवान की भक्ति ही सुख का साधन है,मात्र पूजन कर लेने से कार्य सिद्ध नहीं होते उसको मन वचन कर्म से शुद्धि से उसका भाव समझो,अर्थ समझो जिससे निर्मलता आती है।अतः संसार सागर से पार होने के लिए भक्ति ही नोका है।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में अष्टान्हिका महापर्व के चौथे दिन प्रातः काल श्रीजी का अभिषेक,शान्तिधारा,प्रवचन व श्री नंदीश्वर विधान में सभी ने बैठकर भक्ति भाव के साथ पूजा अर्चना की।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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