सिंगोली(निखिल रजनाती)। साधना का मार्ग अपनाकर उसके सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने वाला साधक भगवत्सत्ता का अधिकारी बन सकता है।तीर्थंकर ही हम सामान्य मनुष्यों के समान ही थे,उन्होंने उस भगवत्सत्ता की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ किया और उसमें सफलता प्राप्त की।आत्मा में अनन्त शक्ति है उसे पहचानकर उससे साक्षात्कार करने का कार्य तीर्थकरों के द्वारा हुआ और उनका पुरुषार्थ मोक्ष के रूप में फलित हुआ।यह बात नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 6 जुलाई गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जैन दर्शन में भगवान अवतार नहीं लेते हैं वे अपने पुरुषार्थ से भगवान बनते है।जैन दर्शन में तीर्थंकर एक बार मुक्ति को प्राप्त कर पुन: संसार में जन्म नहीं लेते हैं।तीर्थंकर बनने वाली आत्मा के आने से पूर्व ही स्वर्ग से देव आकर व्यवस्था बनाते हैं और उनके आने पर उत्सव मनाया जाता है।तीर्थंकरों का आना जनकल्याण के लिए होता है इसलिए उनके गर्भ जन्म-दीक्षा-केवलज्ञान और मोक्ष के समय देव आकर के उत्सव करते हैं उसे आचार्यों ने कल्याणक सार्थक नाम दिया जिनके जन्म के समय कुछ क्षण के लिए शान्ति हो जाती है।वह शांति भले ही स्थाई नहीं फिर भी भव्य जीवों का परोपकार का आत्मकल्याण मार्ग पर लगाते हैं।तीर्थंकर होने वाले जीव प्राणी मात्र के प्रति वात्सल्य भाव रखते हैं इसलिए उनका रक्त श्वेत होता है।प्राणी मात्र के प्रति वात्सल्य का भाव,दया का भाव रखे तो हमारे शरीर में भी श्वेत रक्त कणिकाएं बढ सकती हैं जो शरीर की रोग प्रतिक्षमता बढाती है।इस अवसर पर मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि आज स्वार्थ के कारण समाज में और धर्म में दूषित वातावरण बनता जा रहा है।एक धर्मात्मा सो पापियों को सुधारे तो वह सतयुग होता है,सौ पापी मिलकर एक धर्मात्मा को बिगाड़े तो वह कलयुग होता है।अगर आपका कोई दिल दुखाए तो बुरा मत मानना क्योंकि कुदरत का नियम है जिस पेड़ पर सबसे मीठे फल लगते है उस पेड़ पर ज्यादा पत्थर पड़ते हैं।अनंत पुण्य के योग से हमें मनुष्य योनी मिली है,बुद्धि मिली है क्योंकि मनुष्य को सभी जीवों में श्रेष्ठ बताया है,मनुष्य को अपनी बुद्धि का उपयोग तत्व चिंतन में करना चाहिए।प्रवचन के पश्चात मुनिश्री द्वारा अर्हम योग भी कराया जा रहा है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।