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भगवान के दर्शन से पहले मान कषाय को छोड़ना आवश्यक है- मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।भगवान के समवशरण में प्रवेश करते ही मानस्तम्भ होता है जो मान कषाय के शमन में सहायता करता है।भगवान के दर्शन के पहले मान कषाय को छोड़ना आवश्यक है क्योंकि मान कषाय व्यक्ति को झुकने नहीं देती है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 11 जुलाई मंगलवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि समवशरण में बिना पैर धोए कोई भी नहीं जा सकता है,जिनालय भी हमारे लिए समवशरण के समान है अत: जिनालय में बिना पैर धोए या मौजे पहनकर प्रवेश नहीं करना चाहिए।समवशरण तीर्थंकरों की धर्मसभा का नाम है जिसमें देव,मनुष्य और निर्यच बैठकर धर्मोपदेश सुनते है।समवशरण की शोभा अद्वितीय होती है।समवशरण में ध्वजाएँ भी लगी होती है जो भगवान के यश की पताका को जिन शासन की यश पताका को लहराती है।जिनालय पर भी धर्मध्वजा होती है जो कपड़े की बनी होती है।ध्वज विजय का प्रतीक,यश का प्रतीक है इसलिए ध्वजा कभी फटी हुई हुई नहीं होना चाहिए। फटा वस्त्र दरिद्रता की निशानी मानी जाती है।समवशरण में रहते हैं उन्हे भूख प्यास,रोग आदि की बाधा नहीं होती है वहाँ सभी जीव बैर भाव छोड़कर एक साथ धर्मामृत का पान करते हैं।भगवान के समवशरण में प्रवेश करते ही मानस्तम्भ होता हैबजो मान कषाय के शमन में सहायता करता है।भगवान के दर्शन से पहले मान कषाय को छोड़ना आवश्यक है क्योंकि मान कषाय व्यक्ति को झुकने नहीं देती है।समवशरण में बिना पैर धोए कोई भी नहीं जा सकता है,जिनालय भी हमारे लिए समवशरण के समान है अत: जिनालय में बिना पैर धोए या मौजेपहन कर प्रवेश नहीं करना चाहिए।समवशरण तीर्थकरों की धर्मसभा का नाम है जिसमें देव,मनुष्य और तिर्यंच बैठकर धर्मोपदेश सुनते है।समवशरण की शोभा अद्वितीय होती है।समवशरण में ध्वजाएँ भी लगी होती है जो भगवान के यश की पताका को जिन शासन की यश पताका को लहराती है। जिनालय पर भी धर्मध्वजा होती है जो कपड़े की बनी होती है। ध्वज विजय का प्रतीक यश का प्रतीक है इसलिए ध्वजा कभी फटी हुई नहीं होना चाहिए।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि डरो मत, संयम धारण करो क्योंकि संयम के बिना जीव अपने स्वरूप को प्राप्त नहीं कर सकता।आपकी सभी क्रियाएँ पुण्यवर्धक होना चाहिए।प्रातःकाल भगवान के स्मरण-दर्शन करने से आपका मंगलाचरण स्वत: होकर पुण्य की प्राप्ति हो जाती है।मन्दिर में चाँवल ही क्यों चढ़ाते है क्योंकि चाँवल सफेद होते है,चाँवल अक्षत होते है,चाँवल अखण्ड होते है इसलिए मुझे भी प्राप्त होने वाला पुण्य अक्षय हो,अखंड हो उसका नाश नहीं हो।मुनिश्री के द्वारा प्रातःकाल ध्यान योग कराया जा रहा है जिसमें युवावर्ग भाग ले रहे है व सायंकाल पाठशाला के छोटे छोटे बच्चों को भी पढ़ाया जा रहा है।

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