सिंगोली(निखिल रजनाती)।भगवान की भक्ति में पढी जाने वाली स्तुति से पुण्य की वृद्धि होती है और वह पुण्य धर्म-अर्थ और काम पुरुषार्थ के योग्य सामग्री प्रदान करता है और परम्परा से मुक्ति का कारण बनता है।पुण्य के द्वारा ही भगवान बनने की शक्ति प्राप्त होती है।पुण्य के द्वारा ही उत्तम कुल में जन्म,दीर्घायु,सुदृढ़ और निरोगी शरीर तथा घर में अटूट सम्पदा की प्राप्ति होती है।पुण्य से ही परिजन आदि अनुकूल रहते हैं। शत्रु भी मित्र बन जाता है।पुण्य के प्रभाव से कई पुराण पुरुष ने अपने जीवन में चमत्कार को प्राप्त किया।यह बात नगर मे चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 13 जुलाई गुरुवार को प्रातःकाल मन्दिर जी में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि पुण्य के प्रभाव से सोगा सती के सर्प का हार बन गया, सेठ सुदर्शन के लिए सूली भी सिंहासन हो गई और पुण्य के प्रभाव से ही अंजन चौर भी पाप काट कर निरञ्जन हो गया।आचार्य कहते है कि प्रभु की भक्ति में पूरा मंत्र ही काम करता है ऐसा नहीं है।मंत्र का अक्षर एक पर भी जीवन में सुख-शान्ति प्रदान कर सकता है।एक ग्वाले ने णमोकार मंत्र के एक पद को याद कर उसे जपते रहने के कारण अगले भव में वह तत्भव मोक्षगामी सेठ सुदर्शन बन गया।भगवान की भक्ति प्रत्येक प्राणी केलिए मंगलकारी होती है।भगवान की भक्ति से जीवन में सुख शान्ति समृद्धि की प्राप्ति उसे ही होती है जो उसे अनार्मन से जुड़कर करता है उस भक्ति से प्राप्त पुण्य के द्वारा भक्त भी भगवान बन सकता है जब भी गुरुओं के पास जाए तो उनके मुख से मंगलपाठ अवश्य सुनें क्योंकि गुरुओं के मुख से सुना हुआ मंगलपाठ सभी कार्यों को सिद्ध करने वाला होता है।इस अवसर पर मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि बचपन के संस्कार पचपन तक बने रह कर जीवन को सुखमय बनाते हैं,आज मोबाइल व टेलिविजन के कारण बच्चों मे संस्कार समाप्त हो रहे हैं इस कारण बडे होने पर वे माता पिता से दुर धन कमाने के भाव से जाते हैं और वही होकर रह जाते हैं वर्तमान में अभिभावकों की कमी है वे समय रहते बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं बाद में वे रोना रोते है।