सिगोली(निखिल रजनाती)।भगवान के मन्दिर में उपकरण दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।वैसे तो भगवान श्री सम्पन्न अर्थात् स्वयं में शोभायमान होते हैं,भक्त अपने पाप कर्म को काटने के लिए भगवान के चरणों में सिंहासनादि उपकरण चढाता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षा प्राप्त व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 18 जुलाई मंगलवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि आचार्य कहते है जो भगवान को सिंहासन पर विराजमान करता है वह सर्वोत्कृष्ट मोक्ष के आसन पर विराजमान होता है जो श्रीजी के मस्तक पर छत्र चढाता है वह छह खण्ड का अधिपति होकर बाद में तीन लोक के साम्राज्य को प्राप्त करता है।जो भामण्डल लगाता है वह कान्तिमान शरीर को प्राप्त कर सबके लिए आकर्षित करने वाला होता है।जो चंवर दुराते है,वे संसार के उतार चढाव को नाशकर परम पद को प्राप्त होते है।जो जिनालय में दुन्दुम्भि बजाते है उनकी यश कीर्ति की दुंदुभि चारों ओर बजती है।जो श्रीजी पर पुष्पवृष्टि करते हैं,उनके जीवन में सुख-समृद्धि की सुगंध फैलती है जो अशोक वृक्ष लगाते है,उनके सारे शोक दूर हो जाते है और जो भगवान की दिव्यध्वनि का प्रचार-प्रसार करते है,वे केवल ज्ञान के स्वामी बनते हैं।श्रीजी के चरणों में समर्पित द्रव्य अनन्त गुणा फल प्रदान करने वाला होता है।मुनिश्री ने आगे कहा कि धर्म व्यक्तिगत श्रद्धा का विषय है,इसके लिए किसी पर दबाव डालकर नहीं मनवाया जा सकता है।यदि सबको अपने श्रद्धा भक्ति के अनुरूप धर्म पालन करने दिया जाए तो किसी को भी धर्म परिवर्तन करवाने की आवश्यकता ही नहीं पडेगी।जो धन बल से काय बल से या धोखा देकर धर्म परिवर्तन करा रहे है,उन्होंने अभी धर्म की परिभाषा को नहीं जाना और न ही धर्म को जाना है।कोई भी धर्म किसी के लिए भी जबरजस्ती धर्म पालन करने या करवाने के लिए नहीं कहता है जबकि मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज द्वारा भी छोटे छोटे बच्चों को सायंकाल पाठशाला में बच्चों को धर्म के प्रति पाठ पढ़ाया जा रहा है जिसमें बच्चे भी बढचढ कर भाग ले रहे हैं।