सिंगोली(निखिल रजनाती)।वे धन्य है जो मोक्ष रुपी महल के लिए भक्ति रूपी नींव रखते है।भगवान की भक्ति के माध्यम से शाश्वत सुख की प्राप्ति हो जाती है।जो बिना भक्त बने भगवान बनने का पुरुषार्थ करता है उसका वह कार्य बिना नींव के भवन बनाने के समान है।उक्त बात आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दीक्षित मूनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 22 जुलाई शनिवार को प्रातःकालीन स्वाध्याय के दौरान कही।उन्होंने आगे बताया कि भगवान की प्रतिमा साधारण पाषाण या धातु मात्र नहीं है उसमें मंत्रों और गुणों का आरोपण किया गया है।श्रीजी की प्रतिमा के स्पर्श से और अभिषेक से उन मंत्रों की ऊर्जा हमें प्राप्त होती है।प्रातःकाल श्रीजी का स्पर्श करने प्राप्त ऊर्जा हमें दिनभर के लिए सकारात्मक ऊर्जा व उत्साह से भर देती हैं।श्रीजी से प्राप्त ऊर्जा हमारे सारे कार्यों को सरल कर देती है।श्रीजी से निकलने वाली ऊर्जा पूरे वातावरण को पवित्र कर देते है।जो भगवान का स्पर्श और अभिषेक नहीं करता है वह उस ऊर्जा से वंचित ही रहता है तथा उसके परिणामों में निर्मलता नहीं आती है।उसके विघ्न संकट समाप्त नहीं होते हैं।श्रीजी का अभिषेक उनके लिए नहीं अभिषेक करने वाले के कर्मों को नष्ट करने में कारण होता है।भगवान कर्मों से रहित है।वे परम पवित्र हो गए हैं उन जैसी पवित्रता को प्राप्त करने के लिए ही उनका अभिषेक श्रावक गण करते हैं।इस अवसर पर मुनि श्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि जिनके बच्चे आज संस्कारित नहीं हुए वे माता-पिता कल रोएगे क्योंकि संस्कारहीन संतान उन्हें छोड़कर मात्र धन और अपने परिवार तक सीमित हो जाता है। यदि आप वृद्धावस्था में अकेले नहीं रहना चाहते हो तो बच्चों में आज से ही संस्कार डालना प्रारंभ कर दो।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।