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धर्म रुपी अमृत का पानकर प्राणी शाश्वत मोक्ष स्थान को प्राप्त कर लेता है- मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। भगवान अमृत के समान सभी भक्तजनों को अजर-अमर कर देते है।अमृत को पीकर देवता लम्बी आयु जी लेते है परन्तु वे भी समय पाकर स्वर्ग से मरण को प्राप्त करते हैं और भगवान के द्वारा बताए गए धर्म रूपी अमृत का पानकर प्राणी शाश्वत मोक्ष स्थान को प्राप्त कर लेता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दिक्षीत मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 28 जुलाई शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जहाँ से पुन: वापस नहीं आना पडेगा।हमारे तीर्थंकरों ने धर्मामृत रूपी ऐसा रसायन दिया है जो शरीर को नहीं आत्मा को पुष्ट करता है वह आत्मा को बल प्रदान करता है।उस बल के द्वारा आत्मा समस्त कर्मों को नष्ट कर जन्म-जरा-मृत्यु से रहित हो, परमानन्दमय,अनन्त सुख को प्राप्त कर लेती है।जिसप्रकार चन्द्रमा की किरणें दाह से युक्त व्यक्ति के लिए शीतलता प्रदान करती है,उसी प्रकार भगवान की शरण भी संसार के ताप से शीतलता प्रदान करती है।चन्द्रमा की किरणें निर्मल होती है उसी प्रकार भगवान की शरण निर्मल है, वह शरणागत को भी निर्मल बना देती है।मुनि श्री ने कहा कि मन्दिर में भगवान को प्रक्षालन करने वाले वस्त्र शुद्ध अर्थात हिंसा से रहित हो,उन्हें बनाने में हिंसात्मक वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया गया हो।भगवान का रूप मनोहारी होता है,उनके रूप को जो एक बार आन्तरिक आँखों से देख लेता है,वह और किसी बाहरी रूप की ओर आकर्षित नहीं। होता है।मुनिश्री दर्शित सागरजी महाराज ने कहा कि आप लोग सत्रह वर्ष से प्यासे थे,आज आपके घर गंगा चलकर आई है,इस ज्ञान गंगा में अपनी ज्ञान व धर्म की प्यास को बुझा ली तीन-तीन समय ज्ञानामृत का रसपान करने का अवसर मिल रहा है,उसका पूरा पूरा लाभ सभी को लेना चाहिए।साथ ही साथ जिनालय की शुद्धि का भी ध्यान रखना चाहिए।

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