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जीवन में प्रभु भक्ति में वह शक्ति है जो भक्त को भगवान बना देती है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दीक्षित मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 4 अगस्त शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैसे आषाढ माह में खेतों में बीज बोने के बाद जल से भरे बादल अमृत तुल्य लगते हैं, वैसे ही जिसने हृदय में भगवान का भक्ति रूपी बीज बोया है उसके लिए भगवान की वाणी धर्ममयी अमृत युक्त बादल के समान है।भगवान भक्त रूपी कमलों को विकसित करने के लिए सूर्य के समान है,वे भव्य जीवों को ज्ञान के प्रकाश से विकसित करते हैं।संसार रूपी कुएं से बाहर निकालने मेंएक भगवान ही समर्थ है।भगवान दीन-दुःखी जीवों पर द‌या करने वाले है।भगवान अनन्त गुणों से युक्त है। वे गुण उन्होने कही बाहर से प्राप्त नहीं किए वे गुण उन्होंने अपनी आत्म में पुरुषार्थ से जागृत किये हैं।मुनि श्री ने कहा कि जिस प्रकार भगवान में अनन्त गुण है, वैसे ही संसार के सभी प्राणियों में वही गुण है परन्तु अन्तर इतना मात्र है कि भगवान् उन्हें जागृत कर लिया है अन्य प्राणियों में वे सुप्तावस्था में पडे हैं,उन्हें जागृत करने के लिए भगवान ने सरल,सुगम और सदृढ मार्ग खोल दिया।संसारी जीव त्याग मार्ग से घबराता है क्योंकि यह अनादिकालीन संस्कार के कारण वह त्याग करने की अपेक्षा ग्रहण करने में रुचि लेता  है।आज देखना,दिखाना कम हो रहा है और दूसरों की गलतियाँ पहले सुधारने  की बात करते हैं।जीवन में प्रभु भक्ति में वह शक्ति  है जो भक्त को भगवान बना देती है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागरजी महाराज ने कहा कि आचार्य पूछते हैं कि सत्य क्या है?सारे  विद्वान एक एक मत से कहते हैं कि प्राणियों को अपने प्राण प्रिय होते हैं,वह कही भी जन्म ले परन्तु वहाँ से मरना नहीं चाहता है।चाहे वह तिर्यंच गति भी क्यों न हो। हमारे आचार्यो ने कहा है कि तिर्यंच को वह  गति अच्छी लगती है इसलिए वह वहाँ से निकलना चाहते है।यदि वहाँ उन्हें कोई मारने जाता है तो वे अपने प्राण बचाने इधर उधर भागते हैं।

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