सिंगोली(निखिल रजनाती)। भगवान की भक्ति भक्तों के विघ्नों को नष्ट कर देती है।भक्तों के जीवन में नए कष्ट आने ही नहीं देती है।जो भक्त पूर्ण समर्पण और श्रद्धा से भगवान की भक्ति करता है उसके सारे संकट दूर हो जाते हैं।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज से दिक्षीत मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 5 अगस्त शनिवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि मनुष्य जीवन में कई संकर-कष्ट आते हैं,एक कष्ट दूर होते ही,दूसरा संकट तैयार रहता है।आचार्य कहते है यदि जीवन से संकट को निकालना है तो सच्चे मन से प्रभु का स्मरण करो।जिसे प्रभु याद रहते है,उस पर प्रभु दया करते है।कर्मों के उदय में दुःख आते हैं और भगवान की भक्ति के द्वारा अर्जित पुण्य के द्वारा वे दुःख शीघ्र नष्ट हो जाते है।भगवान की भक्ति शरीर के रोगों ही नहीं जन्म जरा मृत्यु रूपी अनादिकालीन रोग को भी नष्ट कर देती है।भगवान की भक्ति के द्वारा असाध्य रोग भी नष्ट हो जाते है।राजा श्रीपाल को पूर्व भव के पापोदय से कुष्ठ रोग हुआ।मैनासुन्दरी ने भगवान की भक्ति के द्वारा उस रोग को भी ठीक कर दिया।आज भी भक्ताभर स्त्रोत के द्वारा कैंसर जैसे रोग ठीक हो रहे हैं।आचार्य वादिराज स्वामी ने जिनशासन की सुरक्षा व प्रभावना के लिए अपने शरीर में व्याप्त कुष्ठ रोग को भगवान की भक्ति के माध्यम से दूर कर लिया था।भगवान की जो शरण लेता है, वह शत्रुओं को भी मित्र बना लेता है।भगवान की शरण में सांप नेवला, सिंह गाय,कुत्ता,बिल्ली जैसे जन्मजात शत्रु भी मित्र बन कर बैठते है।भगवान की भक्ति,शरण जीवन में अकल्पनीय चमत्कार घटित कर सकती है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि दान क्या है?आचार्यों ने कहा जो आकांक्षा से रहित हो कर दिया जाता है उसे दान कहते है।लौकिक यश,प्रसिद्धि के लिए दिया गया दान सही दान नहीं कहा जा सकता है।दान किस वस्तु का दिया जाता है तो आचार्यों ने कहा जो स्व और पर के लिए हितकारी हो वही वस्तु दान देने योग्य कही गई है।मांस, रक्त आदि का दान दान की कोटि में नहीं आता है।