सिगोली(निखिल रजनाती)।कुछ की चाहत में सब कुछ चला जाता है। भगवान की निकांक्षित भक्ति करने पर व्यक्ति को अपने आप चक्रवती,विद्याधर,इन्द्रपद तक मिल सकता है परन्तु भक्ति के बदले मांगने पर कुछ भी नहीं मिलता है और भगवान की भक्ति परम्परा से मुक्ति की प्राप्ति करा देती है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 7 अगस्त सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि भगवान के बिना व्यक्ति को ऐसी व्याकुलता होनी चाहिए जैसे पानी के बिना मछली व्याकुल होती है।भगवान की भक्ति ही जन्म,वृद्धावस्था और मृत्यु को नाश कर सकती है।भगवान के दर्शन बिना व्यक्ति को लगना चाहिए कि आज विशेष कुछ छूट गया। जब ऐसी प्यास भगवान के प्रति होगी तभी व्यक्ति की भक्ति फलदायी बन पायेगी।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि व्यक्ति की सुन्दरता उसके आभूषणों से नहीं उसके शील व्रतों के पालन से होती है। जिन्होंने शील व्रतों का पालन किया,उनकी देवों ने भी पूजा व सहायता की।व्रतों का पालन करने वालों के सारे विघ्न शीघ्र नष्ट हो जाते है।स्वर्ण और चांदी के आभूषण को चोर चुरा सकते है पर शील रूप आभूषण को कोई नहीं चुरा सकता है।