सिंगोली(निखिल रजनाती)।भगवान की भक्ति पतित को भी पावन बना देती है।पतित से भी पतित भगवान और गुरु की शरण पाकर पावनता को प्राप्त कर लेता है।भगवान की भक्ति कर अंजन चोर भी निरंजन अवस्था को प्राप्त हो गया।आचार्य कहते है कि पापी से नहीं पाप से घृणा करो।पापी को दूर मत भगाओ,उसमें से पापों को भगा सको ऐसा कार्य करो।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 8 अगस्त मंगलवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि आचार्यो ने मन्दिर को एक चिकित्सालय की उपमा दी है।चिकित्सालयों में शरीर का उपचार होता है परन्तु मन्दिर में आत्मा का उपचार होता है।यदि कोई व्यसनी व्यक्ति मदिर आता है तो उसे रोको टोको मत उसे जिस उपचार की आवश्यकता है वह मन्दिर में ही मिल सकता है।व्यसन से मुक्ति प्रभु का उपदेश और गुरु की कृपा से शीघ्र हो सकती है।आचार्यों ने कहा है कि पाप वजन दार होते हैं,इस कारण आत्मा को नरक में ले जाते हैं और पुण्य हल्का होता है,वह आत्मा को उध्व गमन करा देता है।संसार रूपी समुद्र में प्राणियों की जीवन रूपी नाव अनादि काल से भटक रही है,उसे पार लगाने का कार्य भगवान रूपी खेवटिया ही कर सकते है।संसार समुह में इन्द्रिय विषय रूपी भंवर में नाव फंसी है,उसे प्रभु भी ही पार करा सकते हैं।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि वचनों का आभूषण सत्य को कहा गया।जिस प्रकार शरीर आभूषण से सुन्दरता को प्राप्त करता है,उसी प्रकार सत्य वचन के द्वारा सौन्दर्य को प्राप्त करता है।सत्य के द्वारा ही व्यक्ति की विश्वसनीयता बनती है।सत्य ही आत्मा की प्राप्ति का साधन है।सत्य ही मोक्ष प्राप्ति का उपाय है। सत्य का पक्ष लेने वाला विध्नों कष्टों से सरलता से पार हो जाता है।जिन्होंने सत्य को जीवन में अपनाया वे संसार में यश-प्रसिद्धि को प्राप्त हुए।गांधीजी ने भी सत्य को आधार बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह आन्दोलन चलाकर देशवासियों को आजादी के लिए जागृत किया था।इस अवसर सभी समाजजन उपस्थित थे।