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संसार में सुख को लाने वाली एक ही वस्तु है मैत्री भावना - मुनिश्री दर्शित सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)। सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 10 अगस्त गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीवात्मा को संसार में परिभ्रमण करते हुए अनन्तकाल बीत गया है।उसने निगोद पर्याय से यात्रा प्रारंभ की और प्रबल पुण्योदय से मनुष्य पर्याय को प्राप्त किया है।अनादिकाल से निगोद में दुःख भोगे।एक श्वास में अठारह बार जन्म-मरण का दुःख भोगा।उसमें भी एक शरीर में अनन्त जीव एक साथ जन्म लेते हैं और मरण करते है।एक के जन्म होने पर सबका जन्म और एक के मरण होने पर सबका मरण हो जाता है निगोद में से निकलना आसान नहीं है।आचार्य ने कहा है कि चने को फोडते समय एकाध चना उचट कर बाहर आ जाता है उसी प्रकार कोई एक जीव निगोद से दुर्लभता से बिकता है।यहाँ पर द्वीन्द्रिय आदि पर्याय  कर्म के वशीभूत पाता है।नरक में भी जाने पर मिथ्या ज्ञान के कारण दुःख ही दु:ख पाता है।अज्ञानता के कारण नित्य नये कर्मों को बांधकर अपना संसार ही बढ़ाता है।नरक में शारीरिक,मानसिक, वाचनिक,क्षेत्रजन्य तथा असुर देवकृत कष्टों को सहन करना होता है इसलिए भगवान की शरण में जाना चाहिए ताकि संसार भ्रमण मिट जाएं वही मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि संसार में सुख को लाने वाली एक ही वस्तु है वह मैत्री है।प्रेम आगे देव भी किंकर बनकर उसके सेवा करते है और कहावत है सेवा करो मेवा मिलेगा।जब कोई कार्य सत्य के आधार रहता है तो वह नित्य फलता फूलता है।सत्य परेशान तो सकता है पर पराजित नहीं।मैत्री भावना सब जीवों पर दया करुणा,श्रद्धा का भाव रखना सीखाता है।मैत्री भावना के द्वारा तीर्थकर पद तक प्राप्त हो सकता है।मैत्री भावना से व्यक्ति संसार को वश कर सकता है।

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