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भगवान की एक दृष्टि जिस पर पड़ जाए वह संसार समुद्र से पार हो जाए - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।भगवान् अनन्त गुणधारी है,उनकी स्तुति करने में गणधर परमेष्ठी तथा इन्द्रादि भी समर्थ नहीं हो सके तब सामान्य भक्त कैसे उन गुणों को बखान कर सकता है।कहा जाता है कि सारी पृथ्वी को कागज सब वृक्षों की कलम और सारे समुद्रों की स्याही बना ली जाए तो भी भगवान् के गुणों को लिखना सम्भव नहीं है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 12 अगस्त शनिवार को प्रातः काल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि भगवान् आप जैसा दाता संसार में और कोई नहीं हो सकता है।अन्य दातार तो याचक को थोड़ा कुछ देकर सन्तुष्ट कर देते हैं पर आप तो अपने भक्त अपने ही समान बना लेते हो।आचार्य कहते है कि उस धनिक से क्या लाभ जो अपने आश्रित को अपने समान न बनाए।भगवान् आपका यश संसार में इसी कारण से है कि आप सबको अपने समान बनाते हो।भगवान् की एक दृष्टि जिस पर पड़ जाए वह संसार समुद्र से पार हो जाता है।संसारी प्राणी धनवानों,राजनेताओं और बड़े लोगों की नजरों में आना चाहता है जो कि कुछ भी काम आने वाली नहीं है परन्तु भगवान् की नजरों में आ जाए तो संसार परिभ्रमण का अन्त हो जाए।संसार की नजरों से बचो और भगवान् की नजरों में आ जाओ।जिसे किसी व्यक्ति की नजर लग जाती है उसका शारीरिक, आर्थिक नुकसान हो जाता है परन्तु जिसे भगवान की नजर लग जाती है वह भव से पार हो जाता है।भगवान की एक नजर के संकेत मात्र से संसार भंवर में फंसी नाव पार लग जाती है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर महाराज ने कहा कि संसार में जन्मान्ध,क्रोधान्ध,मदान्ध, कामान्ध व रागन्ध पाँच प्रकार के अंधे होते है।जन्मान्ध तो आँख नहीं होने से अन्धा है पर अन्य चार प्रकार के  निंद्य कार्य अथवा अकार्य करने के कारण अँधे कहे जाते हैं।क्रोधान्धादि आँख वाले होकर भी अंधे इसलिए है क्योंकि क्रोधादि के कारण व्यक्ति की सोचने विचार ने की शक्ति कुंठित हो जाती है।इस कारण से क्या योग्य है,क्या अयोग्य है,यह नहीं जान पाते है। जन्मान्ध होना इन चार अन्धों से कही अच्छा है।

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