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भव्य जीवों के कल्याण के लिए माँ जिनवाणी की शरण सुखकारी होती है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।भगवान् जिनेन्द्र के मुख से निकली और गणधरों ने जिसे शास्त्र रूप गूंंथा वह वाणी जिनवाणी कहलाती है।वर्तमान समय में साक्षात् तीर्थकरों,केवली तथा श्रुत केवलियों का अभाव है और धर्मोपदेश देनेवाले आचार्य,उपाध्याय व साधुओं का सान्निध्य सदैव नहीं मिलता है तब माँ जिनवाणी ही भव्यजीवों का मार्गदर्शन करने वाली होती है।जैसे एक बालक के लिए हर परिस्थिति में माँ की गोद सुखकारी होती है वैसे ही हर भव्य जीव के लिए माँ जिनवाणी की शरण सुखकारी होती है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 18 अगस्त शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि ज्ञान का क्षयोपशम बढ़ाना हो जिन्हें विशेषकर पढ़ने वाले छात्रों को ध्यान रखना चाहिए कि ज्ञान के तथा हमसे अधिक ज्ञानी के प्रति हमेशा विनय भाव रखें।विद्या का फल नम्रवृत्ति है।ज्ञानी बनने के लिए संक्लेश परिणामों को कम करना होगा तथा ज्ञान व ज्ञान प्राप्ति के साधनों का यथायोग्य सम्मान करना होगा।आज ज्ञान और ज्ञानी की विनय कल कैवलत्व को प्राप्त करना वाली बनेगी।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि वर्तमान में संसारी प्राणी धनार्जन और भोगोपभोग की सामग्री एकत्रित करने के लिए ही प्रयत्नशील रहता है परन्तु आचार्य कहते हैं कि व्यक्ति को हमेशा विद्या अभ्यास में प्रयत्न करनाचाहिए।विद्याभ्यास के द्वारा व्यक्ति हेयोपादेय वस्तु का ज्ञान कर सकता है और अपने ज्ञान में वृद्धि कर सकता है।निरन्तर अभ्यास से एक तिर्यंच भी सीख जाता है फिर मानव क्यों नहीं सीख सकता है।अभ्यास के बल पर ही एकलव्य महान धनुर्धारी बन पाया।इस अवसर पर कई समाजजन मौजूद थे।

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