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सरस्वती प्राणी मात्र को कल्याण का मार्ग बताकर मंगल करने वाली है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सरस्वती विद्या की देवी है,वह जिनेन्द्र भगवान के मुख से निकली है,अत: सब जीवों का कल्याण करने वाली है।प्राप्त हुआ अगले भव तक जा सकता है,यदि वह यहाँ ज्ञान की विनय करें।आचार्य कहते है कि गुरु का नाम छिपाना या हटाना दोष का कारण है तथा ज्ञान के क्षयोपशम को कम कराने वाला है।सरस्वती प्राणी मात्र को कल्याण का मार्ग बताने वाली है,अतः मंगलकारी है।उक्त बातें यहाँ  चातुर्मास हेतु विराजमान श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 19 अगस्त शनिवार को प्रातः काल धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जिनेन्द्र भगवान के द्वारा प्रतिपादित जिनधर्म भी मंगल‌कारी है क्योंकि जिन धर्म तीन लोक के प्राणियों के लिए दया करुणा का मार्ग बतलाने वाला है,जिनधर्म अहिंसामय है।उसमें सभी जीवों को जियो और जीने दो का मंत्र दिया है।जिनधर्म में धर्म के नाम होने वाली हिंसा का भी निषेध किया है।जो धर्म के नाम पर पशुओं की हिंसा में धर्म मानते हैं,वे उन निरिह पशुओं के साथ अन्याय कर रहे हैं।वह धर्म समीचीन है जो प्राणी मात्र के हित की रक्षा करता है।सभी जीवों को बराबर स्वीकार करता है।जिनधर्म सभी सुखों को देने वाला है।स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति कराने वाला है।धर्म वह मित्र हैं जो भवों-भवों में साथ देने वाला है।जिनधर्म व्यक्ति विशेष के द्वारा स्थापित नहीं किया गया है वह तो सनातन धर्म है जो अनादिकालीन परम्परा से चला आ रहा है,तीर्थकर आदि महापुरुष तो उसके प्रचारक हैं।ऐसे दयामयी,सुखकर जिनधर्म को जो स्वीकार कर लेता है,देवतागण भी उसकी सेवा हेतु तत्पर हो जाते हैं।देवतागण भी उसको नमस्कार करते हैं।

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