सिंगोली(निखिल रजनाती)।जिस प्रकार मजबूत नींव पर खडा किया गया भवन नहीं गिर सकता है उसी प्रकार संस्कारों की नींव पर उन्नति के भवन को प्राप्त व्यक्ति पतन को प्राप्त नहीं हो सकता है।मनुष्य और पशु में मात्र संस्कारों का ही अन्तर है।उन संस्कारों के कारण ही मनुष्य संसार का विशिष्ट जीव है।जीवन निर्माण में भाग्य,पुरुषार्थ,संगति व संस्कार चार मुख्य स्तम्भ है,इनमें से संस्कार की अहम भूमिका है।संसार की समस्त संस्कृतियों से भारतीय संस्कृति संस्कारों की संस्कृति है,थी और रहेगी।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 20 अगस्त रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि आज परिवारों का विघटन,अनुशासनहीनता व अनैतिकता अधिक देखने में आ रही।इन सबका मुख्य एक ही कारण है संस्कारों की कमी।प्राचीन समय के लोग संस्कारों को विरासत में देते थे,इस समय धन,सम्पत्ति को अधिक देते हैं,इस कारण से ही संस्कारित होने से लोग डरते है।मेवाड़ प्रान्त में सर्वप्रथम बार इस बाल संस्कार विधि का प्रारंभ कर रहे।यह संस्कार भाग नहीं,यह व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को सुधारने में प्रभावशील मंत्र है।मेवाड़ प्रांत की इस सिंगोली की पूर्ण समाज की अथक प्राधना वृत्तावृत्त का ही परिणाम है।संस्कारों को आधार बना कर व्यक्ति का निर्माण कर अन्त में निर्वाण सुख को प्राप्त कर सकते है।मुनिश्री के सानिध्य में 23 अगस्त को मुलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान का मस्तकाभिषेक व निर्वाण महोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाएगा व 27 अगस्त रविवार को मेवाड़ व मालवा प्रांत में प्रथम बार मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में भव्य जैनत्व संस्कार (उपनयन संस्कार)विधि महोत्सव होगा जिसमें सैकड़ों की संख्या में बच्चे व युवावर्ग जैनत्व उपनयन संस्कार में हिस्सा लेंगे।रविवार सुबह सम्पन्न हुई धर्मसभा में सिंगोली के अलावा बिजोलियाँ,बोराव,झांतला,कोटा,धनगाँव,थडोद सहित अन्य जगहों के समाजजन उपस्थित थे।