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संसारी जीवों के बीच अरिहन्त पद सर्वोत्कृष्ट पद है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।जो परम पद में स्थित हो वे परमेष्ठी कहलाते हैं।णमोकार के प्रथम पद में अरिहन्त परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है।जिन्होंने अरि अर्थात् कर्म रूपी शत्रुओं का हन्त अर्थात् हनन कर दिया वे अरिहन्त कहलाते है।अरिहन्त परमेष्ठी जीवन मुक्त कहलाते हैं,वे अब पुनः जन्म नहीं लेंगे।संसारी जीवों के बीच अरिहन्त पद सर्वोत्कृष्ट पद है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 22 अगस्त मंगलवार को प्रातः काल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि अरिहन्त ही सिद्ध परमेष्ठी बनने का मार्ग बताते है इसलिए सिद्ध परमेष्ठी से पहले उन्हें नमस्कार किया गया है।अरिहन्तों में भी तीर्थकर अरिहन्त विशेष होते हैं वे अपनी दिव्य ध्वनि के माध्यम से धर्म तीर्थ को प्रचारित करते है।भव्य जीवों को समीचीन मार्ग बताते हैं।आचार्यों ने अरिहन्त भगवान के छियालीस मूलगुण कहे है वे तीर्थकर अरिहन्तों की मुख्यता से ही कहे हैं।अरिहन्त परमेष्ठी अठारह दोषों से रहित होते है,वे कामदेव को जीतने वाले त्रिनेत्र द्वारा सकल विश्व को जानते हैं।मोह-राग- द्वेष त्रिपुर के दाहक,रत्नत्रय रूपी त्रिशुल से मोह रूपी अन्धासुर को मारने वाले,आत्म स्वरूप में निष्ठ तथा दुर्नय का अन्त करने वाले होते हैं।अरिहन्त भगवान् अनन्त ज्ञान,अनन्त दर्शन,अनन्त सुख तथा अनन्त वीर्य गुण से संपन्न होते हैं।जो कोई इन अरिहन्तों की स्तुति करता है उनके भी कर्म रूपी शत्रु का नाश हो जाता है तथा वे भी अरिहन्त अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में 23 अगस्त बुधवार को प्रातःकाल श्री जी का अभिषेक व शांतिधारा श्री पार्श्वनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक व निर्वाण महोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।

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