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संसार के सभी पदों से रहित सिद्ध पद सर्वोत्तम पद है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।जिन्होंने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है जो अनन्त ज्ञान,अनन्त दर्शन,अव्याबाध सुख को प्राप्त कर लिया है वे सिद्ध परमेष्ठी कहलाते हैं,उन्हें सिद्ध इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने सारी विद्याओं को सिद्ध कर लिया है,उन्हें अब कोई कार्य शेष नहीं बचा है।ऐसे सिद्ध भगवन्तों की स्तुति करने से मानव जीवन के भी सारे लक्ष्य सिद्ध हो जाते हैं।सिद्धों के लिए तो तीर्थकर भी नमस्कार करते हैं।संसार के सभी पदों से रहित सिद्ध पद सर्वोत्तम पद है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 25 अगस्त शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि संसार के सारे पद दुःख अशान्ति देने वाले है इसलिए त्याग करने योग्य ही है। जो सांसारिक पद को नहीं त्यागता है,वह सुगति की प्राप्ति नहीं कर पाता है।यदि पद की इच्छा करना ही हो तो सिद्ध पद प्राप्ति की ही करो।सिद्धों को प्राप्त सुख की संसार के किसी भी सुख से समानता नहीं की जा सकती है अर्थात् उनका सुख कल्पनातीत हैं।इन्हें सिद्धों की स्तुति-पूजा-वन्दन कर अनन्ता नन्त योगी मुनि,स्वर्ग तथा मोक्ष सुख को प्राप्त हुए।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में 27 अगस्त रविवार को मेवाड़ व मालवा प्रांत में प्रथम बार सिंगोली नगर मे जैनत्व (उपनयन)संस्कार विधि महोत्सव का भव्य आयोजन होगा जिसमें  7 वर्ष 6 महिने से ऊपर वाले  बडी संख्या में बच्चे व अविवाहित युवावर्ग भी उपनयन संस्कार में बैठकर पुण्य अर्जित करेंगे। मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में नवीन श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर जी में सुबह 11:30 बजे श्रीजी की नवीन वेदी का शिलान्यास किया जाएगा।इस दौरान बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित रहेंगे।

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