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गुरु का सहारा संसार में सबसे मजबूत और भरोसेमंद सहारा होता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।जो शिष्यों को दीक्षा प्रायश्चित देते है तथा स्वयं पंचा-चार का पालन करते हैं और शिष्यों से पालन करवाते है,आचार्य परमेष्ठी होते है।शिष्य के भविष्य को संवारने  और संभालने का कार्य आचार्यों का होता है।शिष्य  का कर्तव्य है कि गुरु की आज्ञा का पालन करे और गुरु पर पूर्ण विश्वास के साथ पूर्ण समर्पण करे।जो गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित होता है,वह जीवन में ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करता है तथा मुक्ति की प्राप्ति करता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 28 अगस्त सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि आचार्य परमेष्ठी ही वर्तमान में हमारे मार्गदर्शक है क्योंकि सिद्ध के दर्शन हम नहीं कर सकते है व वर्तमान में हमारे यहाँ अरिहन्तों का अभाव है।आचार्य परमेष्ठी ही हमारे लिए अरिहन्त और सिद्ध के स्वरूप का ज्ञान कराने वाले है।वे ही संसार से छुड़ाकर मुक्ति के मार्ग पर चलना सीखाते हैं।आचार्य नाव के समान होते हैं जो स्वयं तैरती है और अपने में बैठने वाले को भी पार करा देती है।आचार्य परमेष्ठी स्वयं संसार से पार जाते है और उनकी शरण में आने वाले को भी पार लगा देते हैं।गुरु का सहारा संसार में सबसे मजबूत और भरोसेमंद सहारा होता है।इस अवसर पर समाजजन उपस्थित थे।

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