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जीव मात्र के प्राणों की रक्षा का संकल्प अहिंसा महाव्रत है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।जो महान लोगों के द्वारा ग्रहण किए जाते हैं अथवा जिन्हें ग्रहण करने से महान् पद की प्राप्ति होती है वे महाव्रत कहलाते हैं।अहिंसा,सत्य अचौर्य,ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह ये पाँच महाव्रत कहे गए हैं।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 31 अगस्त गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जीवन पर्यन्त के लिए सभी प्रकार की हिंसा का मन,वचन,काय; कृत-कारित- अनुमोदना पूर्वक त्याग करना अहिंसा महावृत कहा गया।जीव मात्र के प्राणों की रक्षा का संकल्प अहिंसा महाव्रत है,यह सभी व्रतों में मुख्य व्रत है अन्य सारे व्रत उसकी रक्षा हेतु कहे गए है।जैसे खेत की रक्षा के लिए चारों ओर बाड लगाते है उसी प्रकार अहिंसा व्रत की रक्षा हेतु सत्यादि व्रत कहे गए।हित-मित-प्रिय और अनुभय वचन कहना सत्य महाव्रत है।सभी प्राणियों को आघात नहीं लगे ऐसे वचनों प्रयोग साधु को करना चाहिए।कभी भी आदेशात्मक शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए,यही साधु के लिए सत्य महाव्रत कहा  गया है।इन व्रतों का पालन करने से आत्मा के लिए उन्नति का मार्ग प्राप्त होता है इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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