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मौन आत्मा को शक्ति प्रदान करता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।जो मौन की साधना करता है वह मुनि कहलाता है।मन-वचन-काय की चंचलता को रोकने का नाम गुप्ति है।मन को विचार शुन्य करना मन गुप्ति है।मनुष्य का सबसे चञ्चल अंग मन को कहा जाता है।वह सुपर सौनिक विमान से भी तेज गति से सफर करता है।सेकेण्ड के भी हजारवें हिस्से में वह पूरी दुनिया की सैर कर लेता है।मन यदि नियन्त्रित हो जाता है तो वचन और काय को नियन्त्रित करना सरल हो जाता है।आचार्य कहते है बोलो मत अर्थात वचन गुप्ति रखो।वचन गुप्ति के द्वारा कई कठिन परिस्थितियों से सरलता से बाहर निकल सकते हैं।मौन के द्वारा शारीरिक शक्ति की हानि को भी रोका जा सकता है।मौन आत्मा को भी शक्ति प्रदान करता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 2 सितंबर शनिवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि काय की प्रवृत्ति के कारण कर्मों का बहुत आस्रव होता है।यदि काय की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा दिया जाए तो पापासृव पर भी अंकुश लग जायेगा।मन-वचन- काय की गुप्ति के द्वारा व्यक्ति कर्मों का आस्रव नहीं करेगा तथा निर्जरा कर प्राचीन कर्मों से छूट जायेगा।त्रिगुप्ति के पूर्ण रूप धारण करने वाले मुनि होते हैं परन्तु श्रावक भी करके जीवद‌या कर सकता है।त्रिगुप्ति का पालन करके जीव दया का मार्ग प्रदर्शक बन सकता है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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