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जो देव, शास्त्र और गुरु की बात सुनता व समझता है उसका ही जीवन कल्याण को प्राप्त करता है - मुनिश्री दर्शित सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।प्रकृष्ट रूप से कषायों का शमन करना या दबा देना प्रशम भाव कहलाता है।सम्यग्दृष्टि जीत का प्रथम बाहरी लक्ष्ण प्रशम भाव को ही बताया गया है।क्रोध आदि कषायों को आने नहीं देना और आने पर उससे प्रभावित नहीं होना प्रशम भाव की मुख्य विशेषता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 3 सितंबर रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि प्रथम भाव जिसके पास होता है वह हर परिस्थिति में शान्त रहता है।क्रोधादि से अप्रभावित रहने के लिए आचार्यों ने उपाय बताया है कि कषायों के उदय के समय उनके मात्र जानने व देखने वाले बनो,उसमें राग-द्वेष मत करो।देखने से वह विकार कुछ ही देर में शान्त हो जायेगा।जैसे पानी में कीचड़ है,उसे थोड़ी देर यूं ही छोड़ दो,उसे मात्र देखो कुछ ही देर बार वह पानी निर्मल हो जाता है,उसकी कीचड़ नीचे बैठ जाने से ऐसा होता है।प्रशम भाव से युक्त जीव अहिंसा का पालन करने वाला,सत्यवादी,निष्पृही और निर्भीक होता है।वह अहिंसा,सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ता है उसके लिए भले ही प्राण चले जाए।प्रशम भाव बैर भाव को नष्ट करता है तथा मित्रता की वृद्धि करता है।जैसे पुष्प को अपनी सुगंध का प्रचार प्रसार नहीं करना पडता है वैसे ही प्रशम भाव से युक्त जीव को भी अपने उस गुण के प्रचार प्रसार की आवश्यकता नहीं पड़ती है।उसका यश सर्वत्र अपने आप फैलता है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि जो स्थिर मन से देव,शास्त्र और गुरु की बात सुनता है व समझता है उसका ही जीवन कल्याण को प्राप्त करता है।स्वाध्याय के द्वारा हम देव और गुरु की वाणी सुनकर सच्चे त्याग को सफल कर सकते हैं।वह त्याग की भावना औदार्य भाव से ही प्रबल होती है।जिसके पास  सद्‌भावना है वह समस्त विश्व को बिना हथियार के जीत सकता है।संसार में तीन प्रकार के लोग होते हैं।पहले देवता के समान जो सीधे-सादे सदैव दूसरों की सेवा में लगे रहते है दूसरे भैसे के समान दूसरों के कार्यों की सराहना करते है तथा तीसरे प्रकार का व्यक्ति सियार के समान हर समय दुष्टता करता है।आपको यह तय करना है कि इनमें से आप कौन से व्यक्ति है।अच्छे लोग फूलों की तरह होते हैं जो न तोड़े जा सकते है न ही छोड़े जा सकते है।इस अवसर सिंगोली के अलावा धनगाँव,थडोद,बोराव,झांतला, जबलपुर सहित अन्य जगह के समाजजन उपस्थित थे।

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