सिंगोली(निखिल रजनाती)।संसार से मुक्ति प्राप्त करने का साधन है,सब कुछ छोड़कर साधना का मार्ग अपनाना।जो घर में रहकर बिना त्याग मार्ग अपनाये मुक्ति की कामना करता है वह बिना बीज के फल की प्राप्ति करना चाहता है।णमोकार महामंत्र का अन्तिम पद णमो लोए सव्व साहूणम् उस मुक्ति प्राप्ति का मार्ग है।लोक में स्थित सभी साधुओं को नमस्कार करते हुए आचार्य कहते हैं कि साधु पद को ग्रहण किये बिना अरहंत और सिद्ध पद की प्राप्ति नहीं हो सकती है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 6 सितंबर बुधवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जो व्यक्ति साधु को देखकर मुंह फेर लेता है,मुक्ति भी उससे मुख फेर लेती है।वैदिक दर्शन में दिगम्बर साधु का दर्शन शुभ का सूचक माना है।जो व्यक्ति दिगम्बर जैन श्रमण को देखकर इधर-उधर भागता है,उससे पुण्य भी रूठकर इधर-उधर भाग जाता है।दिगम्बर श्रमण परम्परा में साधु को प्राप्त व्यक्ति के लिए अठ्ठावीस मूलगुण अनिवार्य कहे है उसमें से केशलोच मूलगुणन का सर्व साधारण सबसे कठिन मानता है।अपने हाथों से सिर-दाढ़ी व मूंछ के बालों को उखाड़ना कठिन कार्य है परन्तु जैन श्रमण प्रसन्न मुद्रा में यह कार्य सम्पन्न करते है।ऐसी कठिन चर्या का पालन करने वाले और जिनमुद्रा को धारण कर जीवन को सार्थक करने वाले विरले ही लोग होते हैं।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।