सिंगोली(निखिल रजनाती)।संसार में अरिहन्त,सिद्ध,साधु और केवली भगवान के द्वारा कहा गया धर्म ये चार ही मंगल स्वरूप कहे गए हैं।संसार के अन्त के पास पहुँचने के कारण अरिहन्त भगवान मंगल कहे गए हैं।समस्त कर्मो को नष्टकर सभी सिद्धियों को प्राप्त होने से सिद्ध भगवान मंगल कहे गए हैं।साधु परमेष्ठी अरिहन्त सिद्ध भगवान् के बताए मार्ग पर उनके समान रूप को धारण कर चल रहें हैं इसलिए वे भी मंगलमय माने गए हैं।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 7 सितंबर गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि साधु परमेष्ठी में ही आचार्य व उपाध्याय परमेष्ठी को समाहित कर लिया गया है क्योंकि साधु बने बिना आचार्य उपाध्याय नहीं बन सकते हैं।जो व्यक्ति ऐसी जिन मुद्रा के धारी साधुओं की अविनय करता है,वह पतन का मार्ग प्राप्त करता है।साधु के दर्शन को ग्रंथों में मंगलमय माना जाता है और दिगम्बर जैन श्रमण के दर्शन सर्व कार्यों को सिद्ध करने वाला माना गया है।जो अपने सर्व कार्यों की सिद्धि करना चाहता है उसे प्रतिदिन साधुओं के दर्शन अवश्य करना चाहिए।एक तीर्थ के दर्शन से 100 वर्ष के और भगवान की प्रतिमा के दर्शन से 1000 वर्ष के पाप कटते है तो एक सच्चे साधु के दर्शन करने से हजारो-हजार वर्ष के पाप कट जाते हैं।मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के निर्देशन में स्थानीय समाज की महिलाओं द्वारा दो दिवसीय 8 व 9 सितंबर को विशेष महिला सशक्तिकरण संगोष्ठी का आयोजन होगा जिसमें बडी संख्या में महिलाएँ भाग लेगी वही 8 सितंबर शुक्रवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक,शान्तिधारा व चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन व मुनिश्री ससंघ को शास्त्र भेंट व उसके बाद महिला संगोष्ठी होगी व मुनिश्री ससंघ के मंगल प्रवचन होंगे।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित रहेंगे।