सिंगोली(निखिल रजनाती)।नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में प्रतिदिन धार्मिक आयोजन हो रहे हैं।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में महिला सशक्तिकरण संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें बडी संख्या में महिलाओं ने वर्तमान में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार जैसे अन्य विषय पर अपने अपने विचार रखे।प्राप्त जानकारी के अनुसार 8 सितंबर शुक्रवार को प्रातःकाल श्री जी का अभिषेक व शांतिधारा हुई व उसके बाद मंगलाचरण,चित्र अनावरण,दीप प्रज्वलन,मुनिश्री ससंघ का पाद प्रक्षालन व शास्त्र भेंट समाज की महिलाओं द्वारा किया गया।कार्यक्रम का संचालन श्रुति मोहिवाल ने किया,इसके बाद महिला संगोष्ठी की शुरुआत हुई जिसमें क्रम से महिलाओं द्वारा अपने अपने विचार रखे होंसले से भरती है ऊंची उड़ान,ना कोई शिकायत न कोई थकान,सबके जीवन का आधार है,मत करना तुम नारी का अपमान।महिलाओं के उनके पूर्ण अधिकार देना उनका महिला सशक्तिकरण कहलाता है,नारी ही शक्ति है,शोभा घर की जो उसे उचित सम्मान मिले तो घर में खुशियों के फूल खिले।पर हजारों फूल चाहिए एक माला बनाने के लिए हजारों दीपक चाहिए एक आरती सजाने के लिए पर एक स्त्री अकेली घर को स्वर्ग बनाने के लिए।नारी का सबसे अहम व उत्कृष्ट रूप मां है।सभी महिलाओं ने नारी को मिले सम्मान व अत्याचार हो रहे जैसे विषयों पर अपने विचार रखे जिसके बाद मुनिश्री ससंघ के मंगल प्रवचन हुए।धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री ने कहा कि नारी को अपने सशक्तिकरण के लिए स्वयं जागृत होना होगा उसके लिए उसे अपनी मर्यादाओं का भी ध्यान रखना होगा।नारी अपनी मर्यादाओं में रहकर कार्य करे तो परिवार,समाज व राष्ट्र की उन्नति में सक्रिय भूमिका निभा सकती है।नारी और नदी दोनों ही समान होती है।नदी यदि अपनी मर्यादा को छोड़ दे तो सब ओर बर्बादी ला देती है अर्थात् नदी में बाढ आती है तो बर्बादी लाती है उसी प्रकार नारी यदि अपनी मर्यादा छोड़ दे तो स्वयं भी तथा अन्य को भी बर्बाद कर देती हैं।नारी सामंजस्य की प्रतिमूर्ति होती है और सांमजस्य बनाने के लिए घड़ी की तरह टिकटिकाने की जगह पेण्डुलम की तरह टंकार करने की आवश्यकता है।आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने नारी शब्द की व्याख्या करते हुए कहा है ना अरी अर्थात् जो शत्रु नहीं है वह नारी होती है।नारी माँ,पत्नी,बहन,बेटी के रूप में रहकर परिवार में सांमजस्य बैठाने का कार्य करती है।नारी को आचार्यों ने कार्येषु मंत्री कहा है अर्थात कार्य में मंत्री के समान उचित सलाह देने वाली होती है।भारतीय संस्कृति में प्रारंभ से ही नारी को सशक्त करने का कार्य किया है।भारतीय संस्कृति में नारी को देवताओं के समान पूज्यनीय माना है उसे शक्ति का प्रतीक माना गया है।नारी का सम्मान ही उसका सशक्तिकरण है।इस अवसर प्रतिभा ठोला,सुधा साकुण्या,सुधा ठोला,रीना सांवला,लवली ठग,पूजा ठोला,अन्तिम बगड़ा,नेहा साकुण्या,चिंकी बागड़िया सहित महिलाओं ने अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।