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नारी ममता, स्नेह और प्रेम का प्रतिरूप है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में दो दिवसीय महिला सशक्तिकरण संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें बडी संख्या में महिलाओं ने वर्तमान में नारियों के पर हो रहे अत्याचार व अन्य विषयों पर विचार रखे।संगोष्ठी के दुसरे दिन 9 सितंबर शनिवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक,शान्तिधारा हुईं व उसके बाद कार्यक्रम के शुरुआत में मंगलाचरण,चित्र अनावरण,दीप प्रज्वलन,मुनिश्री ससंघ का पाद प्रक्षालन व शास्त्र दान का सौभाग्य समाजजनों को मिला।कार्यक्रम का संचालन श्रुति मोहिवाल ने किया।महिला संगोष्ठी में क्रम से महिलाओं द्वारा अपने अपने विचार रखे अपमान मत करना नारियों का इनके बल पर जग चलता है पुरुष जन्म लेकर तो इन्ही की गोद में पलता है।नारी  की चाहे कितनी भी पूजा कर लो या 9 दिन अखण्ड उपवास कर लो लेकिन नारी की इज्जत नहीं करना सीखी तो सब बेकार है।आजादी के बाद नारियां अपने आपको पहले से अधिक सुरक्षित महसूस कर रही है।आज की नारी चाहतीं है कि मैं भी पुरुषों की तरह काम करुं और बढ चढकर गतिविधियो में भाग लूँ।नारी के कई रुप होते हैं,हमारे देश की जनसंख्या का आधा हिस्सा महिलाऐं है,जीवन के हर क्षैत्र में महिलाओं के योगदान को स्वीकार किया गया है क्योंकि महिला और पुरुष विकास रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं।महिलाएँ राष्ट्र के विकास मे उतना ही महत्व रखती है जितना कि पुरूष।अतः देश का समग्र विकास महिलाओं की भागीदारी बिना संभव नहीं है।इस दौरान मुनिश्री ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि नारी के अनेक रूप हैं।वह सृजन स्वरूपा है,जीवन का सृजन करती है,संरक्षण देने वाली है।जननी के रूप में,धर्मपत्नि के रूप में,बड़ी बहन के रूप में वह प्रत्येक को संरक्षण प्रदान करती है।नारी ममता,स्नेह और प्रेम का प्रतिरूप है।माँ बन ममता लुटाती है,बड़ी बहन बन स्नेह देती है,पत्नि बन प्रेम में डूबो देती है।नारी परीक्षक बन परीक्षा कर योग्यता-अयोग्यता का ज्ञान कराती है।नारी की भूमिका समाज,परिवार और देश में महत्वपूर्ण होती हैं।भारतीय संस्कृति में नारी को सम्मान सबसे अधिक है इसलिए पृथ्वी,नदी,प्रकृति,सरस्वती,लक्ष्मी आदि को स्त्री रूप ही माना है।नारी माँ बनकर संतान को सही संस्कारों के साथ संरक्षण दे तो वह पाण्डव बन जाती और गांधारी के समान आँखों पर पट्टी बांध ले तो संतान कौरव बन जाती हैं।आज हर नारी चाहे वह पुत्री हो,बहन हो,पत्नि हो, स्वतंत्रता और खुला आकाश चाहती हैं परन्तु आकाश में उड़ने लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है।अनुशासन के तहत उसे अपने शील व लज्जा गुण का भी ध्यान रखना अनिवार्य है।नारी जीवन की ऊँचाई को प्राप्त हो यह सभी मानते है पर उसे स्वतंत्रता  देनी होगी तथा नारी को भी अपनी मर्यादा व लज्जा गुण का ध्यान रखना होगा।इस अवसर पर सोनु ठोला,दीपिका ठोला,विद्या ठोला,उषा ठग बोराव,टीना ठोला,टीना साकुण्या,कोकिला साकुण्या,प्रिती सांवला सहित कई महिलाओं ने अपने अपने विचार व्यक्त किए और इसी के साथ दो दिवसीय महिला सशक्तिकरण संगोष्ठी का समापन हुआ।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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