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नारी जब तक अपने अन्दर समाहित गुणों को नहीं जानेगी तब तक वह सशक्त नहीं होगी - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।नारी त्याग की प्रतिमूर्ति होती है,नारी का जीवन प्रारंभ से ही त्यागमय होता है।उसे बहन के रूप में पिता के घर में छोटे भाई-बहनों के लिए त्याग  करना होता है तो पुत्री के रूप में पिता के घर का त्यागकर पति के घर जाना पड़ता है।पत्नि के रूप में पति के लिए तन का त्याग करना होता है,नवसृजन के लिए स्वयं के सुख का त्याग करना होता है तो परिजनों की इच्छा पूर्ति के लिए स्वयं की इच्छाओं का त्याग करना पड़ता है।नारी को सशक्त बनाने के लिए उसे शिक्षित करना अनिवार्य है।शिक्षित करने का तात्पर्य मात्र लौकिक अध्ययन नहीं,उसे नारीत्व के गुणों का भी शिक्षण-प्रशिक्षण देना अनिवार्य है।नारी जब तक अपने अन्दर समाहित गुणों को नहीं जानेगी तब तक वह सशक्त नहीं होगी।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 10 सितंबर रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि नारी शब्द में ही उसके गुण समाहित है।नारी का न कहता है जो नतवान् अर्थात विनयवान् हो।नारी का आ कहता है जो आदर्शवान हो,नारी का र कहता जो रत रहे त्याग भाव में और नारी का ई कहता जो ईश्वरत्व का प्रतिमान हो।नारी में विनयवान्,आदर्शवान, त्यागभावरत व ईश्वरत्व के गुण होते हैं।नारी को मात्र भोग्या नहीं मानना चाहिए वह कुशल प्रशासक एवं व्यवस्थापक होती है परंतु आचार्य कहते है कि ये सभी गुण तभी सार्थक है जब नारी शीलवान् और मर्यादा के साथ रहे।आज युवतियाँ अपने जीवन के आदर्श किसे बना रही है जिनके चरित्र और शील का कुछ पता नहीं है उन्हें रील लाईफ में देखकर बनने का मानस बनाती हैं।नारी को अपने युवती रूप में बहुत सावधानी रखने की आवश्यकता होती है।आज नारी सशक्तिकरण की बात हो रही है,उसका अर्थ स्वच्छन्दता नहीं बल्कि न्यायोचित अधिकार है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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