सिंगोली(निखिल रजनाती)।संसारी प्राणी सर्वोत्तम वस्तु की प्राप्ति की इच्छा रखता है परन्तु अनुत्तम को छोड़ना नहीं चाहता हूँ।अनादि काल से अनुत्तम को साथ लेकर उत्तम की खोज तो मक्खी के समान है जो मुख में मल का कण रखकर फूलों का रस और गंध लेने का प्रयत्न करती है।राग-द्वेष,कषाय भावों को साथ रखकर सर्वोत्तम परमसुख की प्राप्ति की अभिलाषा करना व्यर्थ है।पर्वत पर चढने के लिए जितना वजन कम होगा उतनी ही सरलता व शीघ्रता से ऊपर चढना संभव हो सकेगा।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 11 सितंबर सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि अन्दर में कषाय,पाप के परिणामों का भार होगा तो कभी भी परमात्म पद की प्राप्ति नहीं हो सकेगी।सर्वोत्कृष्ट की प्राप्ति के लिए मन के कुटिल परिणामों को त्यागन होगा।असाधारण उपलब्धि के लिए असाधारण विचार,असाधारण संकल्प तथा असाधारण पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है।तीर्थंकरों,आचार्यो,मुनियों ने असाधारण कार्य करके ही इन असाधारण पदों को प्राप्त किया।कोई सोचे कि उच्च कुल में उत्पन्न हो जाने से उच्चता की प्राप्ति हो जाती है तो आचार्य कहते हैं कि आवश्यक नहीं है कि उच्च कुल मिल जाने से उच्चता या बहुमूल्यता प्राप्त हो जाए उसके लिए असाधरण पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है।दूध,दही,नवनीत और घी एक कुल के होकर भी सबकी बहुमूल्यता और उत्कृष्टता में अन्तर है।सर्वोत्कृष्ट बनने हेतु सर्वोत्कृष्ट का आश्रय लेना होगा। मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में आगामी 17 सितंबर रविवार को चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज के समाधि दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम के साथ बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।इस अवसर सभी समाजजन उपस्थित रहेंगे।