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संसार में हर जीव किसी न किसी की शरण या आश्रय को ढूँढता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।संसार में हर जीव किसी न किसी की शरण या आश्रय को ढूंढता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 12 सितम्बर मंगलवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जो उसे जीवन,धन आदि की सुरक्षा प्रदान कर सके,जीवन और धनादि की सुरक्षा कोई भी नहीं कर सकता है परन्तु जीवन को प्राप्त जीवात्मा को देव-शास्त्र-गुरु और धर्म की शरण मिल जाए तो वह सदा-सदा के लिए सुरक्षित हो सकती है।संसार में बड़े-बडे महारथी भी दर-दर भटकते रहे,अन्त समय में उनको आश्रय देने वाला भी कोई नहीं बचा।जो स्वयं दूसरों को आश्रय देने का दंभ भरते थे वे अन्त समय वन-वन भटके,जो तीन खण्ड को जीतकर अर्ध चक्रवर्ती बने,वे वन में भूखे प्यासे भटकते रहे और एक तीर के लगने से मरण को प्राप्त हो गए।तब कौन किसे यहाँ शरण देने में समर्थ है।संसार में चार ही शरणरूप है-अरिहन्त भगवान्, सिद्ध भगवान्,साधु परमेष्ठी और जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहा गया जिन- शासन।ये चारों ही मार्ग शरण है।सांसारिक माता-पिता, भाई-बन्धु-बहन आदि कोई भी शरण देने में समर्थ नहीं है।हाथ से चलने वाली चक्की में एक कील होती है उसके आधार लेकर जिस प्रकार अन्न पीसने से बच जाता है उसी प्रकार जो धर्म रूपी कील का सहारा लेता है और अन्त में भव सागर से पार हो जाता है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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