नीमच। मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्त्वावधान में ज़िला अदब गोशा नीमच एवं मंदसौर के द्वारा सिलसिला के तहत मंदसौर एवं नीमच के प्रसिद्ध शायरों कश्फ़ी मंदसौरी एवं कलामुद्दीन ज़ाकिर की याद में स्मृति प्रसंग रचना पाठ, एवं शाम ए ग़ज़ल का आयोजन स्थानिय निजी मैरिज गार्डन नीमच में ज़िला समन्वयक अकबर हुसैन शफ़क़ के सहयोग से किया गया।उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित सिलसिला कार्यक्रम के माध्यम से हम मंदसौर एवं नीमच के प्रसिद्ध शायरों कश्फ़ी मंदसौरी एवं कलामुद्दीन ज़ाकिर की शायराना अज़मतों को याद कर रहे हैं और उन्हें ख़िराज ए तहसीन पेश कर रहे हैं। साथ ही अकादमी द्वारा समय समय पर उर्दू शायरी को संगीतबद्ध रूप से प्रस्तुत करने की परंपरा है, उसके तहत जावरा के युवा ग़ज़ल गायक अहमद रज़ा को प्रस्तुति का अवसर दिया गया है।नीमच ज़िले के समन्वयक अकबर हुसैन ने बताया कि सिलसिला कार्यक्रम दो सत्रों पर आधारित था। प्रथम सत्र में रात 8:00 बजे शाम ए ग़ज़ल का आयोजन हुआ जिसमें प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक अहमद रज़ा (जावरा) ने ग़ज़लों की रंगारंग प्रस्तुति देकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने जो ग़ज़लें प्रस्तुत कीं उनमें से विशेष गजल आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक (ग़ालिब) रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ (अहमद फ़राज़) बा ख़ुदा अब तो मुझे कोई तमन्ना ही नहीं (शमीम जयपूरी) दूसरे सत्र में रात 9:30 बजे रचना पाठ का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता नाहीद अनवर ने की। वहीं मुख्य अतिथि के रूप में मीम ऐन अक़सम उपस्थित रहे। इस सत्र के प्रारंभ में मंदसौर एवं नीमच के साहित्यकारों अब्दुल वहीद वाहिद एवं तस्नीम गौहर ने मंदसौर एवं नीमच के प्रसिद्ध शायरों कश्फ़ी मंदसौरी एवं कलामुद्दीन ज़ाकिर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।अब्दुल वहीद वाहिद ने कशफ़ी मंदसौरी की शायरी के बारे में बताते हुए कहा कि कशफ़ी मंदसौरी सी आर पी एफ़ में इंस्पेक्टर के पद पर पदस्थ थे। आपका सम्बंध मंदसौर के साहित्यिक परिवार से था जिसका असर आपके व्यक्तित्व पर पड़ा। उन्हें कम उम्र से ही शायरी का शौक़ था। उन्होंने नौकरी के दौरान नीमच में कई मुशायरों के आयोजन कराया। उनका शुमार उस दौर के उस्ताद शायरों में होता था। कशफ़ी मंदसौरी ने उर्दू और फारसी भाषा में ग़ज़लों और नज़्मों के अलावा शायरी की विभिन्न विधाओं में अपने क़लम के जौहर दिखाये।तस्नीम गौहर ने कलामुद्दीन ज़ाकिर के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि वो पेशे से तो अकाउंट ऑफिसर थे लेकिन उनकी साहित्य एवं शायरी में रुचि थी इसी कारण उन्होंने अपनी नौकरी की व्यस्तता के बावजूद अपने इस शौक़ को ज़िन्दा रखा और शायरी की। उन्होंने ग़ज़लें, नज़्में, क़तआत एवं रुबाईयां कहीं। उनकी शायरी में उस समय के समाजी हालात को बखूबी देखा जा सकता है। उनका कलाम भारत की कई साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ।रचना पाठ में जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनमें नज़र न रखते तो बच्चे ख़राब हो जाते जिगर के टुकड़े कभी के ख़राब हो जाते सिद्दीक़ रतलामी मंज़िलों के रखे नज़रों में उजाले हम ने मुड़ के देखे ही नहीं पांव के छाले हमने
अख़्तर अली शाह अनंत
जो बुझ रही थी अदब की शमा ज़माने में अदब नवाज़ लगे हैं उसे जलाने में अदब का सिलसिला तहज़ीब की ये शामे ग़ज़ल
ये काम आएं हैं तहज़ीब को बचाने में आलम तौक़ीर "आलम" इसके अंदर है वास मिट्टी का
सारा आलम गिलास मिट्टी का (इम्तियाज़ कुरैशी) ज़िंदगी धूप में जब अज़्मे सफर करती है तब कहीं जा के कोई मारका सर करती है अकबर हुसैन शफ़क़,बेटी है वरदान ईश का सुख का ये संसार है
और बेटी से ही तो बनता ये रिश्तों का संसार है
मोहम्मद हुसैन अदीब,कौन रोकेगा पतन किरदार का इस दौर में आदमियत इन दिनों गिरती हुई दीवार है
महिपाल सिंह चौहान,जब भी हम हक़ के चरागों को जलाने निकले,आंधियां ले के कई लोग बुझाने निकले
शहज़ादा सलीम,सदा के गीत- ग़ज़ल भी तुम्हें पुकारे हैं,सुनो न इनकी भी फ़रियाद, ढूँढता हूँ तुम्हें
धर्मेंद्र शर्मा "सदा"।कार्यक्रम का संचालन आलम तौक़ीर द्वारा किया गया।कार्यक्रम के अंत में ज़िला समन्वयक अकबर हुसैन ने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।