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कायर और कमजोर व्यक्ति क्षमा भाव धारण नहीं कर सकता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

दिगम्बर जैन समाज के दस लक्षण पर्व का हुआ आगाज

सिंगोली(निखिल रजनाती)।नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में दशलक्षण महापर्व बड़े धूमधाम व भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है। 19 सितंबर मंगलवार को महापर्व के उत्तम क्षमा धर्म के दिन प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य राजेन्द्रकुमार,पारसकुमार,पंक कुमार,नरेंद्रकुमार मोहिवाल परिवार को प्राप्त हुआ उसके बाद श्रीजी की मंगल आरती व संगीतमय पूजन,देव शास्त्र,गुरु सोलहकारण पचमेरु दशलक्षण विधान हुआ,तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन नेहा साकुण्या ने किया इसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि  बिना लक्ष्य निर्धारित किये जीवन भटकन के अलाना और कुछ नहीं है।जब तक लक्ष्य का निर्धारण नहीं होता है तब तक जीवन की प्राथमिकता भी तय नहीं हो पाती है।वर्तमान के भौतिकवादी युग में प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य मात्र भौतिक भोगोपभोग की सामग्री प्राप्त करना ही रह गया है और वह इनसे सुख की प्राप्ति करना चाहता है।सुख प्राप्ति करना चाहते है और संसार की ओर दौड़ हो रही है अर्थात लक्ष्य से विपरीत चल रहे हैं।सुख प्राप्त करने का लक्ष्य है तो उसी के अनुरूप प्राथमिकता तय होना चाहिए।सुख संसार में नहीं है और संसार को छोडने पर ही सुख मिल सकता है।संसार से पार जाने का एक ही उपाय है-धर्म।धर्म को स्वीकार किए बिना सुख नहीं मिल सकता है।आज से दशलक्षण पर्व प्रारंभ हो रहे हैं।पर्व शब्द का अर्थ जोड या गांठ होता है जो आत्मा को धर्म से जोड़ दे वह पर्व है।पर्व और त्यौहार में अन्तर होता है।पर्व में आत्मरंजन होता है तो त्यौहार में मनोरंजन होता है।पर्व त्याग व भक्ति की ओर ले जाते हैं तो त्यौहार राग-रंग की ओर।पर्व अध्यात्म की ओर तो त्यौहार लौकिकता की ओर ले जाते हैं।पर्व जीवन मूल्यों को बताने वाले होते हैं तो त्यौहार भौतिकता के महत्व की ओर ले जाने वाले होते हैं।आज उत्तम क्षमा धर्म का दिन है।भगवान महावीर की क्षमा वीरों की क्षमा है।कायर और कमजोर व्यक्ति क्षमा भाव नहीं धारण कर सकता हैं।क्रोध आत्मा का स्वभाव नहीं है उसे दूर करने हेतु क्रोध के कारण से बचने का निर्देश आचायों ने दिया है।क्रोध अग्नि के समान होता है,अग्नि ईधन से बढती जाती है वैसे ही क्रोध का निमित्त मिलने पर वह भी बढ़ते जाता है।अग्नि वस्तु को जलाते समय काला करती है और धुंआ भी निकालती है,क्रोधाग्नि भी कर्म कालिमा से आत्मा को काला करती है और दुर्वचन रूपी धुंआ निकालती है।क्रोध रूपी अग्नि को शान्त करने का उपाय है कि निमित्त से बचो और स्वयं को निमित्त बनने से बचाओ।जीवन में क्षमा भाव आते ही सुख का द्वार खुल जाता है।इस अवसर पर सभी समाजजनों ने भक्ति भाव के साथ पूजन अर्चन कर पुण्य अर्जित किया।

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