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मान कषाय का अन्त करने वाला ही सिद्धत्व को प्राप्त करता है - मुनिश्री दर्शित सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।20 सितम्बर बुधवार को पर्युषण पर्व के दुसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म पर प्रातःकाल मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में श्रीजी का अभिषेक शान्तिधारा हुईं।प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य चांदमल,पुष्पेन्द्रकुमार,अखलेश कुमार,धर्मेन्द्रकुमार बगड़ा परिवार को प्राप्त हुआ जिसके बाद भगवान की मंगल आरती व संगीतमय पूजन,देव शास्त्र गुरु सोलहकारण पचमेरू दशलक्षण विधान हुआ।तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन कु.कोयिना सेठिया व कु. टीना साकुण्या ने किया उसके बाद मुनिश्री ने प्रवचन में कहा कि पर्युषण शब्द का प कहता है प्रमाद का अन्त कर पुरुषार्थ करो,य कहता है याचना नहीं निज की यात्रा करो,ष कहता है शत्रुता का अन्त कर समता धारो और ण कहता है नाटक का अन्त कर नम्र बनो,लघुता ही प्रभुता प्राप्ति का मार्ग है।मान कषाय का अन्त करने वाला ही सिद्धत्व को प्राप्त करता है।उपरोक्त बात सिंगोली नगर में चातुर्मास कर रहे मुनि श्री दर्शितसागरजी महाराज ने 20 सितंबर बुधवार को प्रातःकाल धर्मसभा में पर्युषण पर्व के दूसरे दिन उत्तम मार्दव धर्म पर सम्बोधन देते हुए कही।उन्होंने आगे कहा कि कुछ ‌प्राप्त करना चाहते हो तो झुकना होगा,बिना झुके ऊँचाई की प्राप्ति नहीं हो सकती है।धन,विद्या,शक्ति के अहंकार का अन्त किये बिना विनय गुण नहीं प्रकट होता है।रावण के बास बल था,ज्ञान था,विद्याएँ थी पर उसका पतन हुआ क्योंकि उसके पास अहंकार भी था।इस दौरान धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए मुनि श्री सुप्रभसागर जी ने कहा कि जो व्यक्ति अकडता है उसका पतन शीघ्र होता है।बाढ के पानी में सीधे अकड़कर खड़े पेड़ धराशायी हो जाते हैं पर नरम घास झुककर अपने आपका अस्तित बचा लेती है।मान के अभाव में ही मार्दव गुण प्रकट होता है।जीवन में प्राप्त करने के लिए नम्रवृत्ति अनिवार्य है।कुएँ में बाल्टी को भरने के लिए झुकाना पड़ता है उसी प्रकार धर्म को जीवन में भरने हेतु झुकना होता है।चीता ऊँची और लम्बी छलांग लगाने के लिए पहले आगे की ओर झुकता है उसी प्रकार जीवन में सर्वोच्चता की प्राप्ति के लिए विनय गुण आवश्यक है।विनयी व्यक्ति के वश में सारी दुनिया हो जाती है।आचार्यों ने विनय को मोक्ष का द्वार कहा है।आचार्य कहते है कि पुण्य की हवा में अधिक उड़ो मत और पाप के तूफान में अधिक कुलो मत।विनय,क्षमा आदि भावों को धारण कर मुक्ति की प्राप्ति करो।नवनीत की तरह मृदु बनो और जल की तरह सबको साथ लेकर व समाहित करने की क्षमता रखो।यही मार्दव धर्म का भावार्थ है।इस अवसर पर सभी समाजजन ने उत्तम मार्दव धर्म पर भक्ति भाव के साथ पूजन विधान में बैठ कर पुण्य अर्जित किया।

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