सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में दशलक्षण महापर्व बड़े भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है इसी श्रंखला में 21 सितंबर गुरुवार को मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई।प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य सुरेशकुमार,मनोजकुमार,प्रदीप कुमार ताथेडिया परिवार को प्राप्त हुआ जिसके बाद भगवान की आरती व संगीतमय पूजन,देव शास्त्र गुरु सोलहकारण पचमेरू दशलक्षण विधान हुआ वहीं तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन कु.श्रुति बागडिया ने किया इसके बाद उत्तम मार्दव धर्म पर मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं,एक गन्ने की तरह और दूसरे जलेबी की तरह।दोनों में मिठास होती है पर गन्ने की मिठास अन्दर से होती है और जलेबी की मिठास ऊपरी बाहरी होती है उसी प्रकार कुछ लोग अन्दर से ही मधुर व्यवहार वाले सहज स्वभाव वाले होते हैं और कुछ लोग बाहरी सरलता रखने वाले होते हैं।गन्ना आकार में भी सीधा होता है,जलेबी टेडी मेडी होती है।जीवन में गन्ने की तरह सरलता हो न कि जलेबी की तरह कुटिलता।जहाँ सरलता होती है,वहाँ विश्वास होता है और विश्वास के बिना श्रद्धा नहीं आती है और श्रद्धा के बिना सुख की प्राप्ति नहीं होती है।जहाँ छल - कपट,मायाचारी होती है वहाँ अविश्वास शत्रुता तथा पतन होता है।मायाचारी करने वाला पशु योनि को प्राप्त होता है।सरलता आए बिना आत्मतत्व की प्राप्ति संभव नहीं है।निजात्म तत्व को प्राप्त करने के लिए मन,वचन और काय में ऋणु होना आवश्यक है।सांप जब धरती पर चलता है तो आडा-टेड़ा चलता है परन्तु अपने बिल में प्रवेश करता है तो सीधे जाता है उसी प्रकार निज घर में जाने के लिए जीवन में सहजता सरलता की आवश्यकता होती है।जिसका जीवन बांसुरी के समान अन्दर बाहर एक समान होता है उसके जीवन में सुख-शान्ति का मधुर संगीत गुंजायमान होता है।मुक्ति की प्राप्ति के लिए जीवन को गन्ने और बांसुरी जैसा बनाओ।उत्तम आर्जव धर्म माया कषाय को नाश करने वाला है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि धर्म बाहरी आचरण पर नहीं अन्तरंग भावना पर निर्भर करता है।जो अपने व्रतों में दृढ़ रहता है उसकी रक्षा देव लोग भी करते है।जीवन में सरलता लाने हेतु मन, वचन और काय की प्रवृत्ति में समानता होनी चाहिए।जो सोता सोता रह जायेगा उसके जीवन में सरलता सहजता नहीं आ सकती है।मन में कुछ,वचन में कुछ और काय से कुछ यह मायाचारी है और मायाचारी करने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता है।जब उसकी मायाचारी प्रकट होती है तो यहाँ भी सजा पाता है और पर भव में भी दुःख पाता है।जीवन में बाहरी सरलता के साथ अन्तरंग सरलता का पुरुषार्थ भी आवश्यक है।इस अवसर पर चित्र अनावरण,दीप प्रज्वलन व शास्त्र दान करने का सौभाग्य शान्तिधारा करने वाले परिवार को मिला जबकि समाजजनों ने पूजन विधान में बैठ कर पुण्य अर्जित किया।