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आत्मा की शुद्धि के लिए लोभ कषाय को नष्ट करने की आवश्यकता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 22 सितंबर शुक्रवार को दशलक्षण महापर्व पर चौथे दिन उत्तम शौच,धर्म व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान जी महाराज का अवतरण दिवस बड़े बड़े भक्ति भाव के साथ मनाया गया।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक,शान्तिधारा हुईं व उसके बाद संगीतमय पूजन,देव शास्त्र गुरु सोलहकारण पचमेरू दशलक्षण विधान व आचार्य श्री के अवतरण दिवस पर संगीतमय पूजन हुई जिसमें बड़ी संख्या में समाजजन ने भक्ति भाव के साथ पूजन की उसके बाद तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन कु. दिव्यांशी ठोला ने किया उसके पश्चात मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने उत्तम शौच धर्म पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार शरीर की शुद्धि के लिए साबुन और पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार आत्मा की शुद्धि हेतु शुचिता और समता की आवश्यकता होती है।आत्मा की शुद्धि के लिए लोभ कषाय को नष्ट करने की आवश्यकता होती है।बाह्य शारीरिक शुद्धि की अपेक्षा अन्तर मन की शुद्धि मुख्य है।शरीर तो वैसे भी अपवित्र वस्तुओं से बना है उसे कितना भी धोओ नहलाओ,वह पुनः अपवित्र हो जाता है।उत्तम शौच धर्म अन्तरंग शुद्धि की बात करता है।जब तक अन्दर में लोभ बैठा है तब तक शुद्ध नहीं हो सकता है।यह शरीर चारित्र धारण करने से पूज्यता को प्राप्त हो जाता है।मुनिराज रत्नत्रय को धारण करते हैं जिससे बिना स्नान के भी उनका शरीर पूज्य कहा गया है तथा जब उनकी समाधि हो जाती है तो उस जड शरीर की भी पूजा की जाती है क्योंकि उसके द्वारा रत्नत्रय का पालन किया गया था।आचार्य कहते है क्रोध क्षमा को,मान विनय को,माया मैत्री को और लोभ सब कुछ नष्ट कर देता है।लोभ को पाप का बाप कहने का कारण यह है कि लोभ के द्वारा सभी पाए हो जाते हैं।जो निरन्तर प्रवाह-मान रहता है वह शुद्ध होता है।जैसे नदी निरन्तर बहती है इसलिए उसका पानी स्वच्छ और मीठा होता है तथा तालाब का पानी रुका हुआ होता है अतः सड़ने और दुर्गन्ध मुक्त हो जाता है,समुद्र का पानी खारा हो जाता है।लोभ के कारण अति संग्रह करके रखी गई वस्तु की भी यही स्थिति होती है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने कहा कि शुचिता का नाम शौच है।उत्तम क्षमा,उत्तम मार्दव उत्तम आर्जन धर्म से भी अधिक महत्व उत्तम शौच धर्म का है।लोभ कषाय से मुक्त व्यक्ति चमडी जाए पर दमडी न जाए वाले होते है।क्रोध कषाय चेहरे पर दिखाई देती है परन्तु लोभ कषाय दिखाई नहीं देती है।क्रोध के कारण व्यक्ति  अन्धा,मान कषाय के कारण व्यक्ति बहरा हो जाता है,मायाचारी के कारणा गुंगा और लोभ के कारण नाक कटा हो जाता है।बाहरी स्वच्छता पर हम बहुत ध्यान देते है परन्तु बाहरी स्वच्छता से अधिक अन्तर्मन की स्वच्छता की आवश्यकता है।यदि मन स्वच्छ है तो सब ठीक है, कहा भी है मन चंगा तो कढोती में गंगा।मन के हारे हार है,मन के जीते जीत है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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