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संसार से मुक्त होने का एक ही उपाय है संयम धारणा करो - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में दशलक्षण महापर्व बड़े धूमधाम व भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है इसी श्रंखला में 24 सितंबर रविवार को उत्तम संयम धर्म के अवसर पर प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई।प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य लादुलाल,अशोककुमार,हितेश कुमार,विनोदकुमार ठग परिवार को प्राप्त हुआ उसके बाद संगीतमय पूजन,देव शास्त्र,गुरु सोलहकारण पचमेरू दशलक्षण  समुचित पूजन व तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन कु.श्रुति मोहिवाल ने किया वहीं मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने उत्तम संयम धर्म पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि संयम का अर्थ है स्वच्छन्द प्रवृत्ति पर रोक लगाकर स्वच्छ और नियंत्रित प्रवृत्ति करना।अनियन्त्रित गाडी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है वैसे ही अनियन्त्रित जीवन पतन की ओर जाता है।संयम से नियन्त्रित जीवन ऊर्ध्वगामी होता है।नदी किनारों के बीच संयमित होकर बहती है तो वह अपने लक्ष्य महासागर को प्राप्त हो जाती है।मनुष्य की जीवन भी यदि संयमित हो जाए तो वह मुक्ति की प्राप्ति कर सकता है।इन्द्रियों पर नियन्त्रण मानव की अन्तरङ्ग ऊर्जा को जो कि इन्द्रिय विषयों के कारण अधोगामी हो रही है,ऊर्ध्वगामी बना देता है।संयम के द्वारा इन्द्रियाँ नियन्त्रित होती है तो साथ हो साथ वह छन्नी का काम भी करता है।संयमित व्यक्ति के पुण्य छन्नकर आत्मा के साथ जुड़ता है और पाप बाहर ही रह जाता है।आचार्य कहते हैं कि एक-एक इन्द्रिया के वश होकर हाथी,मछली,भौरा,पलंगा और हरिण कष्ट प्राप्त करते है फिर जो पाँचों इन्द्रियों के वश में रहता है उसका क्या हाल होगा ? संसार से मुक्त होने का एक ही उपाय है संयम धारण करो।आचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज ने भी कहा कि संयम धारण किये बिना मुक्ति की प्राप्ति संभव नहीं है।इसी बात पर जोर दिया।जिसके जीवन में संयम आ गया है उन्हें हमेशा तीन बातें याद रखनी चाहिए।पहली काल सिर पर सवार है अर्थात् मृत्यु प्रत्येक समय अपने कदम बढ़ा रही है।दूसरी नजर उठाते ही जहर चढ़ता है अर्थात् चारों ओर इन्द्रिय विषय की सामग्री फैली हुई है उनकी ओर देखते ही मन,वचन,काय में अस्थिरता आती है तथा तीसरी बात पाँव रखते ही पाप लगता है अर्थात प्रवृत्ति से प्रतिपल कर्मों का आसव होता है।जीवन में ग्रहण किए गए छोटे-छोटे व्रत ही महाव्रत तक पहुँचा देते हैं।अतः संयम से डरने की अपेक्षा उसे ग्रहणकर कर्मों का सामना करो।चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन करने का सौभाग्य शान्तिधारा करने वाले परिवार को मिला।मुनिश्री को शास्त्र दान का सौभाग्य महिला मण्डल को मिला।इस अवसर पर सभी समाजजनों ने पूजन में बैठ कर पुण्य अर्जित किया।

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