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तप के द्वारा ही संसार में व्यक्ति का महत्व और मूल्य बढ़ता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।दशलक्षण महापर्व के उत्तम तप धर्म के दिन मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 25 सितम्बर सोमवार को प्रातःकाल श्री जी का अभिषेक व शान्तिधारा हुईं।पचमेरु के उपवास पूर्ण होने के उपलक्ष्य में प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य राजेश,निरज,ईशिता, चयान्शी,दयान्शी,कथान्शी बागड़िया परिवार को प्राप्त हुआ वही पचमेरु के उपवास पूर्ण होने पर मन्दिर जी में भगवान के ऊपर लगने वाला छत्र दान किया उसके बाद संगीतमय पूजन,देव शास्त्र,गुरु सोलहकारण दशलक्षण पचमेरु व समुचित पूजन हुई  वही तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन कु.तनु बागड़िया ने किया उसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने उत्तम तप धर्म पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि तप वह अमूल्य निधि जो मोक्ष की प्राप्ति करा देती है।तपान से सोना शुद्ध और चमकदार बनता है उसी प्रकार आत्मा भी तप के द्वारा शुद्ध अर्थात् कर्म से रहित तथा चमकदार अर्थात् केवलज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित हो जाती है।तप के द्वारा ही संसार में व्यक्ति का महत्व और मूल्य बढता है।  दूध-दही छाछ और घी एक ही वंश के होते हैं परन्तु सबके महत्व और मूल्य में अन्तर होता है।घी अग्नि में तपाकर तैयार होता है उसका मूल्य और महत्व दूध-दही-छाछ से अधिक होता है।संसार की प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति तपने पर ही प्राप्त होती है।सूर्य का प्रकाश सूर्य तपता है तभी प्राप्त होता है।वर्षा के लिए पानी को तपना पड़ता है तब वह बादल बनकर बरसाता है।अन्न पहले धूप में तपता है और बाद में अग्नि में तपता है जब खाने योग्य बन पाता है।जैन दर्शन में छह बाहरी और छह अन्तरङ्ग तप कहे हैं।उनका क्रम आचार्यों ने बहुत सोच विचार कर रखा है।भूखा मात्र रहना,उपवास नहीं है,बिना भोजन किए अपनी आत्मा के निकट बैठना ही उपवास कहलाता है।साधु कर्मों को जलाने के लिए कठिन से कठिन तप करते हैं।तप के द्वारा ही तीर्थकरों ने गणधर परमेष्ठी ने अद्वितीय केवलज्ञान को पाकर भव्य जीवों के लिए हित का मार्ग बताया।पतितात्मा को परमात्मा बनाने का तप ही एक मात्र साधन है।इस दौरान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जिस प्रकार तिल में तेल होता है,पाषाण में स्वर्ण,दूध में घी तथा काष्ठ में अग्नि होती है उसी प्रकार शरीर में आत्मा है पर वह कर्मो के कारण इससे बच नहीं पाती है।मानव की इच्छाओं को रोककर अन्य विधर्म को बाहर निकाल सकते है।जैन धर्म तप का मार्ग है।आत्मा को तपाने के लिए शरीर बर्तन का कार्य करता है।पहले बर्तन तपता है उसके बाद उसके अन्दर रखा पदार्थ उसी प्रकार तप के द्वारा शरीर के नष्ट करते हुए परम सिद्वात्मा पद को पा सकेंगे।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में रविवार को सायंकाल में धूप दशमी पर मन्दिर जी में भगवान को धूप खेरी गई उसके बाद महिलाओं द्वारा अपने अपने घर से आरती की थाली सजाकर लाई गई जो एक से बढ़कर एक थी जिससे संगीतमय भगवान की महाआरती उतारी गई जिसमें बडी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।

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