आचार्य प्रसन्नचंद्र सागरजी,चातुर्मासिक मंगल धर्म सभा हुई प्रवाहित,
नीमच। मनुष्य अपने जीवन में सांसारिक वस्तुओं के संग्रह में ही लगा रहता है घर परिवार की सुख सुविधा जुटाने में अपना जीवन लगा देता है लेकिन वह अपने आत्म कल्याण की चिंता नहीं करता है। मनुष्य को भौतिक सुख सुविधाओं के संग्रहण के स्थान पर अपना पूरा ध्यान अपने आत्म कल्याण पर केंद्रित करना चाहिए।यह बातश्री जैन श्वेतांबर भीड़भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट श्री संघ नीमच के तत्वावधान में बंधू बेलडी पूज्य आचार्य श्री जिनचंद्र सागरजी मसा के शिष्य रत्न नूतन आचार्य श्री प्रसन्नचंद्र सागरजी मसा ने कही। वे चातुर्मास के उपलक्ष्य में बैंक कॉलोनी स्थित पितलिया भवन के समीप आयोजित धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि मनुष्य केवल घर परिवार में भौतिक सुख सुविधाओं की ही चिंता करेगा तो अपने आत्म कल्याण की चिंता कब करेगा इसलिए भौतिकता की नहीं आत्म कल्याण का चिंतन मनन करना चाहिए।आचार्य श्री ने कहा कि हमें प्रभु महावीर से प्रेरणा लेनी चाहिए उन्होंने कभी भी भौतिक जड़ पदार्थों के संग्रहण की चिंता नहीं की बल्कि आत्म कल्याण का मार्ग चुना। समर्पण भक्ति बिना आत्मा का कल्याण नहीं होता ।जिनको संसार का राग होता उनको भगवान का राग नहीं मिलता ।जिसको भगवान का राग हो उसे संसार का राग नहीं मिलता। भगवान का कर्तव्य पूरा होना चाहिए ।भगवान का दिया वापस लौटना चाहिए। जम्मू स्वामी ने अर्बो की संपत्ति 8 पत्निया धन वैभव सब कुछ छोड़कर दीक्षा ग्रहण कीऔर अपने जीवन का कल्याण किया जो आज भी आदर्श प्रेरणादाई है। विवाह के समय पत्नी की थोड़ी सी मांग भरने के बाद जिंदगी भर उसकी मांग पूरी करनी पड़ती है। आहार से त्याग लेना है तो तपस्या करना चाहिए। कमाई में ज्यादा आंनद हैं तो दान भी ज्यादा आंनद से करना चाहिए। गुरु और मंदिर के प्रति मन वचन से समर्पण भाव होना चाहिए।सुपात्र को दान करना चाहिए तभी आत्म कल्याण का मार्ग मिलता है। प्राचीन काल में एक बार एक भिखारी ने आहार ग्रहण करने के लिए दीक्षा ली थी। तब किसी ने कहा था कि यह भिखारी जब सेठ साहूकार के यहां भिक्षा मांगने जाता था तो भिक्षा नहीं दे पाते थे वही सेठ इस भिखारी से संत बने संत को सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं।यही भिखारी अगले जन्म में संपत्ति राजा के रूप में जन्म लिया।संयम जीवन का इतना सम्मान है कि हर व्यक्ति सेवा करना चाहता है। 65 वर्ष की आयु में सुमित्रा बहन पीतलिया ने सभी दीक्षाएं पूर्ण कर ली है यह एक गौरव की बात है।। धर्मसभा में तपस्वी मुनिराज श्री पावनचंद्र सागरजी मसा एवं पूज्य साध्वीजी श्री चंद्रकला श्रीजी मसा की शिष्या श्री भद्रपूर्णा श्रीजी मसा आदि ठाणा 4 का भी चातुर्मासिक सानिध्य मिला।