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सांप को दिया वचन निभाया, अब लोक देवता के रूप में होती है तेजाजी की पूजा

सिंगोली में 6 दिवसीय विशाल मेले का आयोजन

सिंगोली(निखिल रजनाती)।इतिहास में कई ऐसे वीर महापुरूष हुए हैं जिन्होंने वचन निभाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान तक दे दिया ऐसे ही वीरों में एक नाम शामिल है तेजाजी महाराज का जिन्होंने गायों की रक्षा के लिए एक सांप को दिया वचन भी निभाया।अपने प्राण न्यौछावर करने वाले गौ रक्षक तेजाजी आज जन-जन के बीच लोक देवता तेजाजी महाराज के रूप में पूजे जाते हैं।प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को नगर परिषद सिंगोली व मेला कमेटी के सहयोग से तेजाजी दशमी पर्व  मनाया जाता है।मान्यतानुसार नवमी की पूरी रात रातीजगा करने के बाद दूसरे दिन दशमी को वीर तेजाजी के मंदिर पर मेला लगता है जिसमें डोलर,चकरी झुले,मनिहारी आदि दुकानें अलग अलग गाँव से तेजाजी की ध्वज रूपी झण्डी भक्त नाचते गाते लेकर आते है व हजारों की संख्या में श्रद्धालु नारियल,फूल,भोग चढ़ाने एवं तेजाजी की प्रसादी ग्रहण करने मंदिर आते हैं।इस वर्ष 25 सितंबर से 30 सितम्बर 6 दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाएगा।दशमी पर्व श्रद्धा,आस्था एवं विश्वास के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है।मत-मतांतर है कि दशमी को तेजाजी की थानक पर पूजा अर्चना होती है जिसमें तेजाजी,बासक देव की सवारी (वारा)जिसे आती है उसके द्वारा रोगी,दुःखी,पीड़ितों का धागा खोला जाता है एवं महिलाओं की गोद भरी जाती है।वर्षभर से पीड़ित,सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीड़ों की तांती (धागा) छोड़ा जाता है।माना जाता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति,पशु यह धागा सांप के काटने पर तेजाजी के नाम से पीड़ित स्थान पर बांध लेते हैं इससे पीड़ित पर सांप के जहर का असर नहीं होता है और वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाता है।जाट किसान परिवार में हुआ था जन्म।राजस्थान में नागौर जिले के खरनालियां गांव में तेजाजी का जन्म हुआ था।नागवंशी क्षत्रिय जाट घराने के एक जाट परिवार में जन्मे वीर तेजाजी सामान्य किसान के बेटे थे तेजाजी के पिता ताहड़ देव और माता रामकंवरी भगवान शिव के उपासक थे।मान्यता है कि माता रामकंवरी को नाग-देवता के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई थी।जन्म के वक्त तेजाजी की आभा और चेहरे के तेज को देखते हुए उनका नाम तेजा रखा।माता-पिता ने जन्म के बाद मात्र 9 माह की आयु में ही उनका विवाह 6 माह की पेमल के साथ अजमेर जिले के पुष्कर में करवाया।ऐसे निभाया सांप को दिया वचन।तेजाजी के मन-वचन में सत्य की भावना छाई हुई थी समाज सेवा में पर पीड़ा,जीव दया और नारी की रक्षा के लिए तेजाजी ने कभी भी अपने प्राणों की परवाह नहीं की।लाछा गुर्जरी की गायों को बचाने के लिए डाकूओं से लोहा लिया और गायों की रक्षा के लिए जाते वक्त आग में जल रहे सर्प को बचाया तो जोड़े से बिछुड़ जाने के कारण सांप क्रोधित हो गया और तेजाजी को डसने लगा तेजाजी ने उसे रोककर बताया कि वे गायों को बचाने जा रहे हैं,सांप को वचन दिया कि वापस लौटूंगा तब डस लेना गौरक्षा युद्ध में तेजाजी घायल हो गए वचन निभाने के लिए सांप के पास पहुंचे तो पूरे शरीर पर जख्म देखकर सांप ने डसने से मना कर दिया तेजाजी ने वचन पूरा करने के लिए अपनी जीभ निकालकर कहा कि यहां घाव नहीं है इस पर सांप ने जीभ पर डसा।वचन निभाते हुए गौ रक्षा के लिए दिए इस मार्मिक बलिदान के बाद तेजाजी को लोकदेवता मानकर पूजा जाने लगा।तेजाजी को मानते हैं शिव का ग्यारहवां अवतार।वीर तेजाजी को भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार माना जाता है।राजस्थान,मध्यप्रदेश,गुजरात, उत्तरप्रदेश,हरियाणा और अन्य राज्यों में इन्हें लोक देवता के रूप में पूजा जाता है वे जिस घोड़ी पर सवार रहते थे उसका नाम लीलण था उनके साथ में अस्त्र भाला,तलवार और धनुष बाण रहते थे।इनके चबूतरे को तेजाजी का थान और भवन को तेजाजी का मंदिर कहते हैं।इनके लोक गीतों को तेजा गायन कहा जाता है।

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