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अंदर से ममत्व का त्याग किए बिना सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती - मुनिश्री सुप्रभ सागर

अनन्त चतुर्दशी पर होगा महामस्तकाभिषेक

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर दशलक्षण महापर्व बड़े धूमधाम व भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है।इसी श्रंखला में 27 सितंबर बुधवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई।प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य चांदमल,पुष्पेन्द्रकुमार,अखलेश कुमार,धर्मेन्द्रकुमार बगड़ा  परिवार को प्राप्त हुआ जिसके बाद संगीतमय पूजन,देव शास्त्र,गुरु सोलहकारण पचमेरू आकिंचन्य पूजन दशलक्षण पूजन हुई व उसके बाद चित्र अनावरण दीप प्रज्वलन,शास्त्र दान करने का सौभाग्य शान्तिधारा करने वाले परिवार को प्राप्त हुआ वही तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन कु.खुशी सेठिया ने किया जिसके पश्चात मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कल उत्तम त्याग का दिन बाहरी परिग्रह त्याग ‌करते का दिन था तो आज अन्दर में बैठे राग-द्वेष-मोह रूपी परिग्रह को दूर करने का दिन है।अन्दर से खाली हुए बिना ऊर्ध्वगमन संभव नहीं है।तराजू का जो पलड़ा खाली होता है वह ऊपर की ओर उठता है।अन्दर से वस्तु या व्यक्ति के प्रति ममत्व को त्याग किए बिना सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है।आचार्यों ने वस्तु के प्रति आसक्ति को ही परिग्रह कहा है।यदि आसक्ति नहीं छूटती है तो संसार भी नहीं छूट सकता है।संसार ने व्यक्ति को नहीं,व्यक्ति ने स्वयं को संसार से बांध रखा है।एक गाय के गले में रस्सी जरूर बंधी रहती है पर वह मालिक से नहीं बंधी है,मालिक उससे बंधा हुआ है क्योंकि मालिक को गाय के प्रति ममत्व भाव है।संसार में सुख प्राप्त करने की इच्छा करना,करेले का मीठा हो जाने की इच्छा करने के समान है।कदाचिद् करेला प्रयोगों के माध्यम से मीठा हो भी जाए परन्तु संसार में कभी सुख नहीं हो सकता है।व्यक्ति संसार में जब आता है तो खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है।अकेला आता है और अकेला ही जाता है।आकिंचन्य धर्म कहता है कि संसार की सारी चेतन अचेतन वस्तुएँ कभी आत्मा की नहीं थी,नहीं है और नहीं होगी।ममत्व का त्याग होते ही व्यक्ति को शान्ति और सुख की प्राप्ति होती है।बडे-बडे शूरवीर, राजा-महाराजा आए और गये।उनमें से किसी का भी आज अस्तित्व नहीं रहा,जब वे स्थाई नहीं रह पाए तो हम संसार में कहाँ स्थाई रह पायेंगे इसलिए आकिंचन्य धर्म को जीवन में उतारने की आवश्यकता है।इस दौरान मुनिश्री दर्शितसागर महाराज ने कहा कि संसारी प्राणी चेतन-अचेतन पदार्थों में ऐसा अटका पड़ा है कि उसे स्वयं का परिचय नहीं आ रहा है।अहंकार और ममकार में ऐसा डूबा है कि उसे स्वयं के गुणों का परिचय ही नहीं ज्ञात हो पा रहा है।उस ममत्व के कारण आत्मा की अनन्त शक्ति दबी पड़ी ही रह जाती है।गूँगा बोलने,अंधा देखने की और लंगडा नाचने की इच्छा करता है परन्तु  एकल इन्द्रियों से मुक्त होकर भी भगवान् की भक्ति नहीं करता है। दशलक्षण महापर्व के अन्तिम दिन 28 सितंबर गुरुवार को मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में अनन्त चतुर्दशी पर मुलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान,नेमिनाथ भगवान,बाहुबली भगवान का महामस्तकाभिषेक होगा वहीं वेदी पर विराजमान सभी भगवान की शान्तिधारा होगी।उल्लेखनीय है कि मुलनायक पार्श्वनाथ भगवान की शान्तिधारा सालभर में एक बार होती है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित रहेंगे।

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