क्षमावाणी पर्व पर सिंगोली में निकली भव्य शौभायात्रा
सिंगोली(निखिल रजनाती)। सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में दशलक्षण महापर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया।30 सितंबर शनिवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई।प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य मदनलाल,अनिलकुमार,सुनील कुमार सामरिया परिवार को प्राप्त हुआ वहीं दोपहर में 1 बजे श्रीजी की भव्य शौभायात्रा निकली जो नगर के प्रमुख मार्गो पुराना बस स्टैंड,तिलस्वां चोराहा कीर्ति स्तम्भ चोराहा,विवेकानंद बाजार, अहिंसा पथ होते हुए शान्तिसागर सभा मंडपम विद्यासागर सन्त निलय पर पहुँची।शौभायात्रा में युवावर्ग धोती दुपट्टा पहनकर नाचते झुकते चल रहे थे जबकि विज्ञान वर्धनी महिला मण्डल,सुज्ञान जाग्रति महिला मण्डल अपनी अपनी ड्रेस कोड में थी जो नृत्य करते हुए चल रहे थे।दस,पांच और तीन उपवास करने वाले रथ में बैठै थे।शौभायात्रा मन्दिर जी पहुंची जहाँ श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा,चित्र अनावरण व दीप प्रज्वलन करने का सौभाग्य अशोककुमार,लोकेशकुमार, अभिषेककुमार साकुण्या परिवार को मिला।शास्त्र दान करने का सौभाग्य उपवास करने वालों को मिला वहीं दस,पांच और तीन उपवास करने वालों का समाज के द्वारा सम्मान किया गया।तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन करने वाली बहनों का भी सम्मान किया गया।इस दौरान पाठशाला पढ़ाने वाली बहनों का भी सम्मान किया गया।क्षमावाणी पर्व पर समाजजनों की ओर से मुनिश्री ससंघ से निर्मल कुमार खटोड़ के द्वारा क्षमा याचना मांगी गई जिसके बाद मुनिद्वय के सानिध्य में क्षमावाणी पर्व पर मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने उत्तम क्षमावाणी पर्व पर विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि क्षमा अर्थात् मन की शुद्धि और जब तक मन की शुद्धि नहीं होती है तब तक उसमें परमात्मा का निवास नहीं हो सकता है।पशु-पक्षी भी बैठने से पूर्व स्थान को स्वच्छ करते है तब मन में राग-द्वेष,क्रोधादि की गन्दी होगी तब तक परमात्मा कैसे आयेगे।जहाँ तुच्छता,थोथापन,ओछापन होता है वहाँ कभी क्षमा भाव नहीं हो सकता है।लघु होना अलग,तुच्छ होना अलग है।लघुता में नम्रता,क्षमा भाव होता है।तुच्छता में छोटापन व कषाय के भाव होते है।आकार का गलन ही आम क्षमा के जन्म में सहयोगी होता है।जब तक अहंकार रहता है तब तक क्षमा भाव नहीं आ सकता है।अहंकार और अज्ञानता के कारण ही अपराध होते है,इन अपराधों की शुद्धि के लिए क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है।क्षमावाणी उनसे करो जिनसे हमारा अबोला हो जिनके प्रति मन से कलुषता हो यही वास्तविक क्षमावाणी होगी।किसी को क्षमा कर देने से मन हल्का हो जाता है।क्षमा भाव धारण करने वाला नवीन कर्मों के बंधन से बच जाता है इसलिए दिगम्बर श्रमण परम्परा में श्रमण चौबीस घंटे में दो बार सभी जीवों से क्षमा याचना करते हैं।क्षमावाणी पर्व वचनों मात्र से ही मन से होना चाहिए।कषाय भाव के साथ क्षमा भाव नहीं हो सकता है।प्रवचन के बाद मुनिश्री ससंघ ने भी समाजजनों से क्षमा याचना मांगी।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।