सिंगोली(निखिल रजनाती)। सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 1 अक्टूबर रविवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई।प्रथम शान्तिधारा करने का सौभाग्य चांदमल,पुष्पेन्द्रकुमार, अखलेशकुमार,धर्मेन्द्रकुमार बगड़ा परिवार को प्राप्त हुआ उसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भावों की शुद्धि के लिए द्रव्य,क्षेत्र और काल की शुद्धि आवश्यक है।यदि द्रव्य अर्थात् धन-धान्य की शुद्धि नही होगी तो परिणाम शुद्धि नहीं होगी।कहा भी है जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन,जैसा पीवे पानी वैसी होवे वाणी।अन्याय-अनीति से प्राप्त धन सुख नहीं प्रदान कर सकता है।वह धन अनावश्यक कार्यों मे ही खर्च होता है।न्याय-नीति का द्रव्य ही सही कार्यों में लगता है।जिसका द्रव्य सही रीति से नहीं कमाया है उसका उपभोग अन्य अन्य लोग ही खाते हैं।शुद्धि के चार प्रकार कहे गए हैं- द्रव्य शुद्धि, क्षेत्र शुद्धि,काल शुद्धि और भाव शुद्धि।प्रारंभ के तीन प्रकार तो अन्त की शुद्धि के लिए कहे हैं।भावों की शुद्धि के बिना आत्म तत्व की प्राप्ति नहीं होती है।आत्मशुद्धि के लिए ही हम बीते को भुलते जाए और अपने बाह्य द्रव्य की शुद्धि के लिए न्याय-नीति पूर्वक धनार्जन करें।इस अवसर पर सिंगोली के अलावा रावतभाटा,धनगाँव,बिजोलियाँ व अन्य जगहों के समाजजन उपस्थित थे।