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अहिंसा के माध्यम से ही देश को आजादी मिली - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 2 अक्टूबर सोमवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई वही उसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व के सभी दर्शनों ने अहिंसा को स्वीकार किया है परन्तु जैन दर्शन की अहिंसा अन्य सभी दर्शनों से विलक्षण है।जैन दर्शन ने सूक्ष्म रूप से अहिंसा को परिभाषित किया है,शेष सारे दर्शनों ने अहिंसा को स्थूल रूप से ही स्वीकारा है।जैनदर्शन भावों की ओर दृष्टिपात करता है,वह भाव प्रधान दर्शन है।आचार्यों ने अहिंसा को परम धर्म,परम ब्रह्म भी कहा है।अहिंसा की छाया में सिंह-गाय एक ही घाट पर पानी पीते हैं।अहिंसा का तात्पर्य कायरता नहीं है।अहिंसा के साथ शिक्षा का महत्व बढ़ जाता है।अहिंसा के माध्यम से ही देश को आजादी मिली।अहिंसा वह शस्त्र जिसके सामने देव भी पानी भरते है।एक हिंसक क्रूर वनराज को भी अहिंसा के बल पर शाकाहारी बनाने की क्षमता है तो वह सही स्थान अहिंसा व्रत है।अहिंसा पर्व को इस दिन मनाने का उद्देश्य यही कि देश को आजादी दिलाने वाले अहिंसा के पुजारी मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्मदिवस है और वे अन्त तक उसका पालन करते रहे।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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